\
“जिंदगी में नाम कमाने की ख्वाहिश बचपन से ही रही। नन्हा बालक रहा होउंगा, जब मैं मां को ये गाना सुनाता था- ‘माता मुझको बंदूक दे दो, मैं सरहद पर जाऊंगा...दुश्मन को मार भगाऊंगा।’ ये पंक्तियां मैंने कहां सीखीं, याद नहीं। लेकिन मां बताती हैं कि मैं काफी कम उम्र में ये गाना गाता था। नाम कमाने की ख्वाहिश से जुड़ी एक और बात है। जब मैं मां को कहा करता था कि ‘मां ये सर्किट हाउस में जो नेता लोग आए हैं, उन पर अगर बम फोड़ दूं तो मेरा नाम हो जाएगा।’ मां ने मेरी महत्वाकांक्षा को ध्यान में रखते हुए मैट्रिक परीक्षा के बाद एनडीए (नेशनल डिफेंस एकेडमी) की परीक्षा से जुड़ीं किताबें लाकर दीं और बोलीं कि अगर मैं सच में नाम कमाना चाहता हूं तो मुझे एनडीए की तैयारी करनी चाहिए। लेकिन, इस तरह मैं नाम नहीं कमाना चाहता था।”
ये बात जिसने लिखी है, उसकी गिनती बिहार के बाहुबली नेताओं में होती है। उनका नाम तो है राजेश रंजन, लेकिन लोग पप्पू यादव के नाम से जानते हैं, बुलाते हैं। पप्पू यादव ने ये बातें अपनी आत्मकथा ‘द्रोहकाल का पथिक’ में लिखी है, जो उन्होंने जेल में लिखी थी।
पप्पू यादव एक बार विधायक और 5 बार सांसद रहे हैं। वो पहले राजद में थे, लेकिन 2015 में उन्होंने जन अधिकार नाम से अपनी पार्टी बना ली। चर्चा है कि पप्पू यादव मधेपुरा सीट से विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं। पप्पू ने 2019 में मधेपुरा से लोकसभा चुनाव भी लड़ा था, लेकिन हार गए थे।
31 क्रिमिनल केस दर्ज हैं, इनमें हत्या-किडनैपिंग जैसे मामले शामिल
पप्पू यादव ने 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त जो एफिडेविट दाखिल किया था, उसमें उन्होंने अपने ऊपर 31 क्रिमिनल केस होने की बात मानी थी। इनमें से 9 केस में चार्जशीट दाखिल हो चुकी है। हत्या के मामले में उन्हें सजा भी मिल चुकी है। हालांकि, बाद में हाईकोर्ट ने उन्हें सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था।
माकपा नेता की हत्या के मामले में मिली थी सजा
पप्पू यादव का जन्म 24 दिसंबर 1967 को बिहार के पूर्णिया जिले में हुआ था। इसी पूर्णिया जिले की पूर्णिया विधानसभा सीट पर विधायक थे माकपा के अजीत सरकार। वो यहां से 1980 में पहली बार जीते थे और उसके बाद लगातार 1985, 1990 और 1995 में भी जीते।
अजीत सरकार उन दिनों काफी चर्चित नेता थे और अपनी सादगी के लिए जाने जाते थे। कहते हैं कि वो कभी प्रचार के लिए भी नहीं जाते थे। जब उनके कार्यकर्ता कहते कि ऐसे तो आप चुनाव हार जाएंगे, तो वो कहा करते थे, हमने जो काम किए हैं, वही हमारा प्रचार है।
वो 14 जून 1998 का दिन था। इस दिन दिनदहाड़े कुछ लोगों ने उन पर अंधाधुंध गोलियां चला दीं और उनकी मौत हो गई। इस गोलीबारी में पार्टी के कार्यकर्ता अशफाकुल रहमान और उनके ड्राइवर हरेंद्र शर्मा की भी मौत हो गई।
उनके भाई कल्याण ने मुकदमा दर्ज कराया। बाद में उनकी हत्या की जांच सीबीआई को सौंपी गई। सीबीआई की जांच में पप्पू यादव का नाम भी आया। 10 साल बाद सीबीआई कोर्ट ने पप्पू यादव, राजन तिवारी और अनिल यादव को उम्रकैद की सजा सुनाई।
बाद में इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, जिसने मई 2013 में अपना फैसला दिया। पप्पू यादव को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया। हालांकि, सीबीआई ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
लव स्टोरी भी बड़ी दिलचस्प, फिल्मी कहानी की तरह
पप्पू यादव की लव स्टोरी भी बड़ी दिलचस्प है और किसी फिल्मी कहानी से कम भी नहीं है। बात 1991 की है। उस समय पप्पू बांकीपुर जेल में बंद थे। जेल में बंद पप्पू अक्सर जेल अधीक्षक के घर से लगे मैदान में लड़कों को खेलते देखा करते थे। इन लड़कों में एक था विक्की। बाद में विक्की से पप्पू यादव की नजदीकी बढ़ी।
कहानी में ट्विस्ट तब आया जब एक दिन पप्पू ने विक्की के फैमिली एल्बम में टेनिस खेलती रंजीत की तस्वीर देखी। फोटो देखकर पप्पू रंजीत पर फिदा हो गए। पप्पू अक्सर उस टेनिस क्लब पहुंच जाया करते थे, जहां रंजीत टेनिस खेला करती थीं। रंजीत को ये सब पसंद नहीं था। उसने कई बार मना किया, लेकिन पप्पू नहीं माने।
बाद में जैसे-तैसे रंजीत तो मान गईं, लेकिन परिवार वाले नहीं माने। रंजीत सिक्ख थीं और पप्पू हिंदू। तब किसी ने उन्हें सलाह दी कि उस समय कांग्रेस के नेता रहे एसएस अहलूवालिया उनकी मदद कर सकते हैं। उनसे मिलने पप्पू दिल्ली जा पहुंचे और मदद की गुहार लगाई। पप्पू यादव की आत्मकथा में भी इसका जिक्र है। आखिरकार रंजीत के परिवार वाले मान गए और फरवरी 1994 में दोनों की शादी हो गई। अब दोनों का एक बेटा सार्थक और एक बेटी प्रकृति है।
पप्पू यादव कहते हैं, ‘मैं धन्यवाद देता हूं रंजीत जी को कि उन्होंने मेरे प्यार को समझा। तीन साल तक हमारी दोस्ती चली थी। पूरे संघर्ष के बाद भी उन्होंने मेरा साथ दिया। फरवरी 1992 से चल रहे प्रेम प्रसंग के बाद मेरी शादी 1994 में हुई। वो दौर बड़ा संघर्ष वाला था। उस समय एक-दूसरे से मिलना, पटना आना-जाना, बहुत बड़ी बात थी। मैं खुशनसीब हूं कि मुझे बहुत अच्छी पत्नी मिली हैं।’
रंजीत रंजन भी सांसद रही हैं। उन्होंने पहली बार 1995 में विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं। उसके बाद उन्होंने 2004 का लोकसभा चुनाव सहरसा से लड़ा और जीत गईं। 2009 में कांग्रेस के टिकट पर सुपौल से लड़ीं, लेकिन हार गईं। 2014 में रंजीत फिर कांग्रेस से सुपौल से ही लड़ीं और जीत गईं। 2019 में भी रंजीत कांग्रेस के टिकट पर सुपौल से लड़ी थीं, लेकिन जदयू के दिलेश्वर कामत से हार गई थीं।
5 साल बाद जेल से छूटकर सांसद बने, बेस्ट परफॉर्मिंग एमपी बने
पप्पू यादव ने 2008 से 2013 तक 5 साल जेल में बिताए। क्योंकि, 2008 में उन्हें सजा मिल चुकी थी, इसलिए उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लग गई थी। 2013 में जब वो जेल से छूटे तो अगले ही साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में मधेपुरा से राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीता।
अगले साल 2015 में पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च ने एक डेटा दिया। इसमें उसने पप्पू यादव को ‘बेस्ट परफॉर्मिंग एमपी’ बताया। इस रिपोर्ट के मुताबिक, पप्पू यादव ने लोकसभा की 57 बहसों में हिस्सा लिया था। इतनी बहसों में बिहार के 40 सांसदों में से किसी ने भी हिस्सा नहीं लिया था।