कभी ‘डिस्‍कनेक्‍ट’ और ‘डिजिटल डिटॉक्‍स’ का मंत्र सौंपने वाले होम स्टे अब वाइ-फाइ और डॉन्‍गल के हवाले

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पहाड़ शहरों के नहीं हो सकते तो क्या हुआ, शहर वाले तो पहाड़ों के हो सकते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी इन दिनों लिखने में मशगूल हैं ऐसे प्रोफेशनल्स जो लॉकडाउन में अपने फ्लैटों में सिमटकर रह गए थे। इनमें आईटी पेशेवर, लेखक, कंटेंट क्रिएटर, ग्राफिक डिजाइनर, फोटोग्राफर, व्लॉगर, ब्‍लॉगर, रिमोट वर्कर, फ्रीलांसर शामिल हैं।

ये वो लोग हैं जो शहरों में कंक्रीट के मायाजाल से मुक्त होने की अपनी बेताबी के संग पिछले छह सात महीनों से जीते-जीते आजिज आ चुके थे। और अब अनलॉक होते ही अपने वर्क स्टेशनों को कहीं दूर किसी हिल स्टेशन पर, किसी पहाड़ की ओट में, वादियों में, नदी या समुद्रतट पर ले जाने को आतुर हैं।

लॉकडाउन से उपजी इस छटपटाहट में बिजनेस के मौके सूंघने वाले भी कम नहीं हैं। देश जब घरबंदी से बाहर निकलने की उल्टी गिनती गिन रहा था तो ट्रैवल की दुनिया 'वर्केशन' की ज़मीन तैयार कर रही थी। देखते ही देखते हिमाचल और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में कितने ही होम स्टे, कॉटेज-होटल मालिकों ने मिलकर इस सपने को साकार कर दिखाया।

ऐसे प्रोफेशनल्स जो लॉकडाउन में अपने फ्लैटों में सिमटकर रह गए थे। अब वे हिल स्‍टेशन जा रहे हैं। फोटो क्रेडिट- नॉट ऑन मैप।

''मैंने अपने परिवार संग इस साल गर्मियों में हिल स्‍टेशन पर बिताने का मन बनाया था। उत्‍तराखंड के हिल स्‍टेशन रानीखेत से सटे गांव मजखाली में एक सर्विस अपार्टमेंट करीब ₹30 हजार में बुक करने ही वाले थे कि लॉकडाउन लग गया।

अब अनलॉक के बाद हमने सोचा कि महीने भर के लिए न सही, कुछ दिनों के लिए चला जाए तो पता चला कि वहां कितने ही विला और कॉटेज सितंबर में ही ‘सोल्‍ड आउट’ की तख्‍ती टांग चुके हैं। जिस अपार्टमेंट में हम जाने वाले थे, उसे लॉन्‍ग टर्म होमस्‍टे का रूप देकर मालिक ने किराया बढ़ाकर करीब ₹90 हजार कर दिया है।''

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