स्थान – पटना समामहरणालय (डीएम आफिस) परिसर में नूजा सहनी की पकौड़े वाली दुकान
समय - दोपहर 2 बजे
दो दिन की छुट्टी के बाद सोमवार को डीएम ऑफिस में काफी भीड़ दिखी। भीड़ कुछ रोजमर्रा के काम वाली है, कुछ चुनावी काम वाली। डीएम दफ्तर से थोड़ी ही दूरी पर पीपल के पेड़ के नीचे नूजा की ब्रेड पकौड़े वाली दुकान है। भीड़ का फायदा उसे भी मिल ही रहा है। हालांकि, नूजा को यह सब जी का जंजाल ही ज्यादा लग रहा है। कड़ाही से गरमा-गरम पकौड़े निकल रहे हैं और उसकी मिर्ची का तल्ख स्वाद चुनावी चर्चा में गर्मी ला रहा है।
ठेले पर रखा लाल मग उठाकर हाथ धुलते हुए एक अधेड़ सज्जन ने जोरदार आवाज में पकौड़े का ऑर्डर दिया और धम्म से कुछ इस अंदाज में बैठ गए जैसे लम्बा बैठने वाले हों। नूजा की भी खासियत है कि यहां आने वाले हर नए शख्स को एक-दो दिन में ही नाम और काम से पहचान लेता है। दानापुर के रामनरेश भी ऐसे ही लोगों में से हैं।
एक सप्ताह से बेटे का जाति प्रमाण-पत्र बनाने के लिए दौड़ रहे रामनरेश से भी नूजा का जैसे सीधा रिश्ता बन चुका है। नूजा ने पूछा- ‘आजो काम नहीं हुआ क्या!' रामनरेश झल्लाते हुए बोले, 'का काम होगा। पहिले कोरोना अब चुनाव बाधा बन गइल बा।’ इतना सुनकर हाथ में पकौड़े की प्लेट पकड़ते हुए एक युवक बोला ‘डिजिटल इंडिया है बाबा... दौड़ना तो पड़ेगा ही न!’ शायद आसपास किसी कार्यालय में काम करने वाला कर्मचारी है।
बात चल ही रही थी कि स्टूल पर कुर्ता-पायजामा वाले एक सज्जन, नाम शायद राजू पांडेय था, बोल पड़े- ‘ई त कागज है…छोड़िये न... ई सब त सरकारी कामकाज है। चुनाव आ गईल, गांव का हाल बतावा बाबा।’ इस पर रामनरेश फिर झल्लाए और बोले, 'देखा न बाबू जाकर गांव में, नाली-पानी कुछू ठीक नाहीं। जइसे-तइसे हम गांव के लोग समय काट रहल बांटी। चुनाव का शोर में नेताजी दुआरे-दुआरे रोज आते हैं, फिर उहे पुरनका बड़का-बड़का सपना देखाते हैं।’
बहुत ध्यान से बातें सुन रहा, खड़ी बाइक से टेक लगाकर बैठा युवक बोल पड़ा है- ‘ई चुनाव तो परेशान कर दिया है। क्षेत्र में कोई काम नहीं हुआ है, लेकिन नेताजी को दोबारा मौका मांगने में तनिको शरम नहीं आ रहा।’ पास में ही खड़ा एक छात्र (गणेश) बोल पड़ा, ‘नौकरी नहीं मिली तो नूजा की तरह पकौड़ा ही छानना पड़ेगा’। उसका तंज मोदी जी के चर्चित पकौड़ा बयान पर तो है ही, बगल में बैठे अपने दोस्त जो शायद मोदी समर्थक है, को चिढ़ाने की मंशा ज्यादा है। हालांकि, दोस्त ने मुस्कराकर बहस से किनारा कर लिया है।
किनारे खड़ा होकर पकौड़ा खाते एक दूसरे युवक से रहा नहीं गया। बोल पड़ा- ‘कार्यालय में कोई काम नहीं हो रहा है। सब डिजिटल हो गया, लेकिन कोई भी काम ऑनलाइन नहीं हो पा रहा है।' चार दिन से जन्म प्रमाण-पत्र के लिए डीएम ऑफिस दौड़ रहा यह युवक भी दौड़ते-दौड़ते तंग आ चुका है। शायद राजेश नाम है। विकास के सपने और जमीनी सच्चाई पर तीखी नाराजगी है उसकी।
चर्चा विकास की चल पड़ी तो पेड़ के नीचे बैठा युवक बोल पड़ा- ‘डीएम ऑफिस के आस-पास ही घूमकर देख लीजिए कितना गंदगी है। नाली है ही नहीं, पानी खूब जमा होता है। दिन में ही मच्छर नोच डालते हैं। शाम होते ही यहां रहना मुश्किल हो जाता है।’ विकास की बात सुनते ही कंकड़बाग के रहने वाले एमआर सोनू दुबे का पारा गरम हो गया। बोला- 'सरकार काम कर ही दे तो वोट काहे के दावे पर मांगेगी। नेता लोग बहुत चालू होते जा रहा है। वह चुनाव के समय कोई न कोई ऐसा नाटक लाते हैं, जिससे पब्लिक भी गदगद हो जाती है।' एक हताशा भरी टिप्पणी आई है- ‘विकास-फिकास छोड़िए... कहता है कि सब डिजिटल हो गया, लेकिन कोई भी काम ऑनलाइन नहीं हो पा रहा है। कौन सा विकास गिना रहा है ई सब। एक-एक हफ्ता में जन्म प्रमाण-पत्र तो बन नहीं पाता। अगर ऑनलाइन होने के बाद भी इतने चक्कर लगाने पड़ रहे तो सच आप खुद ही समझ सकते हैं।'
चुनावी बतकही लंबी होते देख नूजा एक हाथ में झाड़ू और दूसरे में टिन का डस्टबिन लेकर पत्तल उठाने लगा है। झाडू लगने से उड़ रही धूल उसकी ओर से चर्चा में विराम का संकेत है। दुकान से उठ जाने का भी। समय पास कर रहे लोग मजबूरन रास्ता पकड़ लेते हैं। नूजा अपने आप से कुछ बोल रहा है- ई चुनाव और नेता के बारे में सुनते-सुनते अभिये से माथा दरद हो गया है...। बोला- कब है चुनाव जी पटना में...! उसकी झुंझलाहट समझी जा सकती है। चुनावी चर्चा की बैठकी उसकी बिक्री पर असर जो डालने लगी है।
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