जंग के 37 दिन हो गए हैं, लोग सीमा पर लड़ रहे हैं या वहां से बुलावा आने का इंतजार

 

नागार्नो-काराबाख में अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच छिड़ी जंग के 37 दिन हो गए हैं। हर बीतते दिन के साथ मरने वालों की तादाद बढ़ रही है। आर्मेनिया के एक हजार से अधिक सैनिक अब तक मारे जा चुके हैं। अजरबैजान ने मारे गए अपने सैनिकों की संख्या जारी नहीं की है। सिर्फ नागरिकों की मौत का ही ब्योरा दिया है। वहीं, आर्तसाख से 90 हजार से अधिक लोग जान बचाकर आर्मेनिया पहुंच चुके हैं। बड़ी संख्या में भारतीय भी आर्मेनिया में रहते हैं। इसमें बिजनेस मैन से लेकर स्टूडेंट और डॉक्टर तक शामिल हैं। सभी अपनी तरफ से युद्ध में सहयोग कर रहे हैं।

अभिषेक एक मल्टीनेशनल कंपनी में ऑफिसर हैं। हाल ही में वे काराबाख के स्तेपनेकार्ट होकर आए हैं। उन्होंने आर्मेनिया से फोन पर बात करते हुए बताया, 'यहां हर जगह बर्बादी के निशान दिखते हैं। जो सिटीसेंटर लोगों से भरा रहता था, अभी खाली है। साल 2016 में जब यहां तीन दिन का युद्ध हुआ था, तब मैं यहीं फंसा था। हम लोगों को यहां से निकालकर ले जाया गया था। तब युद्ध जल्द ही रुक गया था, लेकिन इस बार जंग रुकने के संकेत नहीं नजर आ रहे हैं। कई ऐसे गांव हैं, जो पहले हुई लड़ाइयों में पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं।'

नागार्नो-काराबाख अधिकारिक तौर पर अजरबैजान का इलाका है, जिसमें आर्मेनियाई मूल के लोग रहते हैं और इस समय यहां आर्मेनियाई लोगों का ही नियंत्रण है। आर्मेनिया में इस इलाके को आर्तसाख कहा जाता है और वो इसे अपने लिए पवित्र भूमि मानते हैं। पंजाब के मलेरकोटला का रहने वाली अक्शा खान का परिवार येरेवान में इंडियन महक रेस्त्रां चलाता है। अक्शा के मुताबिक, उनका रेस्त्रां युद्ध से प्रभावित लोगों के लिए खाना पैक करके भिजवा रहा है।

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