दुनियाभर में शुक्रवार को क्रिसमस मनाया जाएगा। इस दिन ड्राईफ्रूट्स और मसालों की खुशबू वाला प्लम (आलूबुखारा) केक खाने की परंपरा है। यह केक मूल रूप से यूरोप का है, लेकिन भारत में पहली बार 1883 में उत्तरी केरल के तटीय शहर थालास्सेरी में बना था। बर्मा (अब म्यांमार) से लौटे एक स्थानीय व्यापारी ममबल्ली राजू ने दालचीनी उगाने वाले ब्रिटिश किसान मर्डोक ब्राउन की सलाह पर यह केक तैयार किया। राजू का परिवार पीढ़ी-दर-पीढ़ी यह केक बना रहा है।
राजू के पोते और ममबल्ली बेकरी के मालिक प्रकाश बताते हैं, ‘मेरे दादा ब्रिटिश सैनिकों के लिए दूध, चाय और ब्रेड बर्मा से मिस्र भेजते थे। वे 1880 में थालास्सेरी लौटे और रॉयल बिस्कुट फैक्ट्री बेकरी शुरू की। उन दिनों अंग्रेजों की जरूरत कोलकाता स्थित एकमात्र बेकरी से पूरी होती थी। इसलिए दादा की फैक्ट्री किसी भारतीय द्वारा स्थापित पहली बेकरी बनी, जो भारतीयों के लिए भी थी।’
प्रकाश आज 17 किस्म के प्लम केक तैयार करते हैं, वो भी देसी फ्लेवर के साथ। वे बताते हैं, ‘बर्मा में दादा बिस्कुट बनाने में दक्ष हो गए थे। इसलिए पहले दिन से वे 40 तरह के बिस्कुट, ब्रेड बनाने लगे। उन दिनों 1883 का क्रिसमस आने वाला था। एक दिन मर्डोक दादा के पास आए और इंग्लैंड से खरीदा प्लम केक दिखाकर बोले, ‘ऐसा ही केक तैयार करें।’ दादा ने 10 दिन मांगे।’
राजू बताते हैं कि मर्डोक ने मूल सामग्री देकर फ्रेंच ब्रांडी मिलाने को कहा था। इसकी बजाय दादा ने कोको, किशमिश और सूखे मेवे मिलाए। मर्डोक ने भारत में बना पहला प्लम केक चखा तो खुश हुए। राजू के रिश्तेदार तिरुअनंतपुरम में बेकरी चला रहे प्रेमनाथ बताते हैं, ‘उन दिनों खमीर नहीं मिलता था, इसलिए शराब मिलाई जाती थी। आज भी केक पुराने तरीके से बनाया जाता है। बस शराब की जगह खमीर इस्तेमाल करते हैं।’
केरल प्लम केक का बड़ा मार्केट, दावा: वहीं खुली थी देश की पहली बेकरी
भारत में केरल प्लम केक का सबसे बड़ा मार्केट है। ममबल्ली परिवार ही केरल की सबसे बड़ी बेकरी संभालता है। कोचीन बेकरी (कोच्चि), सांता बेकरी (तिरुअनंतपुरम), थालास्सेरी की ममबल्ली बेकरी जैसी कई बेकरी इसी परिवार की हैं। हर बेकरी में राजू द्वारा मर्डोक ब्राउन को दिए पहले केक की पेंटिंग आज भी ग्राहकों का स्वागत करती है।
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