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दिसंबर का महीना और दिल्ली की सर्दी। हल्की बारिश ने तापमान को और गिरा दिया है। इन हालात में दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर हजारों किसान खुले आसमान के नीचे डेरा डाले हुए हैं। ठंड, बीमारी और अन्य कारणों से एक दर्जन से ज्यादा किसानों की जान जा चुकी है। ये किसान केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए तीनों नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं। लेकिन, देश के किसानों की समस्याएं सिर्फ इन तीन कानूनों तक सीमित नहीं हैं। बदहाली की इस तस्वीर को एक बड़े कैनवास पर देखना जरूरी है।
आजादी के वक्त भारत की करीब 80% ग्रामीण आबादी खेती का काम करती थी। उस समय देश का एग्रीकल्चरल प्रोडक्शन करीब 500 लाख टन था। ये अनाज उस वक्त भारत की पूरी आबादी का पेट भरने के लिए नाकाफी था। 1950 में जब पहली पंचवर्षीय योजना बनाई गई तो उसमें खेती को केंद्र में रखा गया।
1960 के दशक में सरकार ने बांध बनाए, नहरों का जाल बिछाया, कृषि संस्थानों की स्थापना की, बाजारों की संख्या बढ़ाई, अच्छे बीजों के आयात का रास्ता साफ किया। नतीजतन आजादी के बाद करीब 3 गुना बढ़ोतरी के साथ 1968 में देश के किसानों ने रिकॉर्ड 170 लाख टन गेहूं का उत्पादन किया।
1991 के आर्थिक सुधार के बाद से सरकारों का ध्यान खेती से हटकर अन्य सेक्टर की तरफ मुड़ गया। आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन यानी OECD की ताजा रिपोर्ट कहती है कि भारत में पिछले दो दशकों के दौरान कृषि आय में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। जनगणना के मुताबिक, 2001 से 2011 के बीच किसानों की संख्या में 77 लाख की कमी हुई है। NCRB के मुताबिक, 1995 के बाद से किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा तीन लाख पार कर चुका है।
2020 की स्थिति यह है कि कृषि से देश के करीब 50% लोगों को रोजगार मिलता है, लेकिन सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP में इसका योगदान महज 16% है। NSSO के 2013 में किए गए सर्वे के मुताबिक, भारत के किसानों की औसत मासिक आय महज 6,426 रुपये है।
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अब सवाल उठता है कि भारत के किसानों को इस बदहाली से निकालने का तरीका क्या हो? इसके लिए टेक्नोलॉजी और पॉलिसी दोनों स्तर पर सुधार की भरपूर गुंजाइश है।
हम आपको उन टेक्नोलॉजी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनका इस्तेमाल खेत की तैयारी से लेकर अनाज को बाजार में बेचने तक की प्रक्रिया में किया जा सकता है। उन एग्रीटेक फर्म के बारे में भी बताएंगे जो उन सेगमेंट में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। एग्रीटेक ऐसी कंपनियों को कहा जाता है, जो फसल की पैदावार बढ़ाने, गुणवत्ता सुधारने और लागत को कम करने के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करती हैं।
1. स्मार्ट खेती से कम होगी लागत (Precision/Digital Agriculture)
खेती में इंटरनेट से जुड़े यंत्र (IoT), डेटा एनालिटिक्स और रोबोटिक्स का इस्तेमाल करके अच्छी फसल उगाई जा सकती है। इससे लागत में कमी आती है और फसल की गुणवत्ता भी बढ़ जाती है। इस सेगमेंट का एक स्टार्टअप Fasal है। इसके मध्य प्रदेश प्रभारी संजय पाठक बताते हैं कि हम किसान के खेत में IoT के यंत्र लगाते हैं। जिससे मिट्टी की गुणवत्ता, फसल की बीमारियों का पता पहले से चल जाता है। इस सर्विस का इस्तेमाल किसान सब्जियों के खेती के लिए खूब कर रहे हैं। इस सेगमेंट में कुछ और स्टार्टअप्स हैं Intello, Labs, Stellapps, Fasal, Fresh VnF और Eruvaka Technoligies.
2. एडवांस टेक्नोलॉजी से बढ़ेगी पैदावार (Farming As A Service)
भारत में करीब 80% किसानों के पास 5 एकड़ से कम जमीन है। उनके लिए ट्रैक्टर, थ्रेशर, हैरो, लेवलर जैसी आधुनिक मशीनें खरीदना मुश्किल काम है। जबकि, इनके इस्तेमाल से खेती की पैदावार बढ़ाई जा सकती है। पर होने वाला खर्च कम हो सकता है। यहीं से फार्मिंग एज ए सर्विस (FaaS) का आइडिया आया। इस सर्विस के जरिए नई टेक्नोलॉजी वाली मशीनें सीधे खेत पर बुलाई जा सकती हैं, वो भी किराए पर। Oxen के फाउंडर विश्वजीत सिन्हा के मुताबिक, ओक्सेन के जरिए लेबर कॉस्ट में 50% तक कमी लाई जा सकती है। इस सेगमेंट के कुछ स्टार्टअप हैं जैसे EM3 Agri Services, Kethinext.
3. सप्लाई चेन से बिचौलियों का सफाया (Market Linkage)
भारत में फसलों की मौजूदा सप्लाई चेन में किसान से कंज्यूमर के बीच 5-6 बिचौलिए शामिल होते हैं। हर स्टेप में बिचौलिए अपना मुनाफा निकालते जाते हैं। इससे कंज्यूमर को तो प्रोडक्ट महंगा मिलता है, लेकिन किसान को उसका फायदा नहीं होता। कुछ मार्केट लिंकेज स्टार्टअप हैं, जो इस समस्या का हल तलाशने की कोशिश करते हैं। जैसे Ninjacart सीधा किसानों से फसल खरीदता है और उसे होटल, रेस्टोरेंट या रिटेलर को बेचता है। इस सेगमेंट के कुछ अन्य स्टार्टअप हैं WayCool, Crofarm और Ecozen, ये स्टार्टअप कैसे काम करता है, इसे वीडियो में देख सकते हैं।
खेती के लिए बीज, रसायन और अन्य क्वालिटी इनपुट मुहैया कराने के लिए Bijak, Gramophone, Toolsvilla और Agrostar जैसी फर्म हैं। इसी तरह किसानों के फायनेंस के लिए Samunnati, Farmart, Jai Kisan, Sagri, PayAgri जैसी फर्म हैं। इन सभी स्टार्ट-अप के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए आप इनकी वेबसाइट और वहां मौजूद कॉन्टैक्ट नंबर पर बात कर सकते हैं।
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पिछले कुछ सालों में एग्रीटेक स्टार्टअप्स का बाजार बढ़ जरूर रहा है, लेकिन इसकी रफ्तार बेहद कम है। एग्रीटेक के जानकार सुब्रमण्यम और पद्मजा रुपारेल का मानना है कि अभी इस सेक्टर में अधिक इनोवेशन की जरूरत है। जब तक इन स्टार्टअप्स का एक स्थायी बिजनेस मॉडल नहीं बन जाता निवेशकों में हिचकिचाहट बनी रहेगी। अब सवाल उठता है कि क्या सिर्फ टेक्नोलॉजी के दम पर किसानों की जिंदगी में खुशहाली लाई जा सकती है?
कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा बताते हैं कि पंजाब में एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी की कोई कमी नहीं है। वहां गेहूं की पैदावार 5.2 टन प्रति हेक्टेयर और धान की 6.6 टन प्रति हेक्टेयर होती है। इसके बावजूद पंजाब में किसान आत्महत्याएं करते हैं। टेक्नोलॉजी से पैदावार बढ़ाई जा सकती है, लेकिन उससे किसानों को जो आय मिलनी चाहिए नहीं मिल रही। कृषि नीतियों के जानकार विजय सरदाना भी मानते हैं कि सिर्फ टेक्नोलॉजी के दम पर किसानों की बदहाली नहीं बदली जा सकती।
पॉलिसी के स्तर पर क्या किया जाना चाहिए? देविंदर शर्मा कहते हैं कि सरकार को हर पांच किलोमीटर पर एक मंडी बनानी चाहिए जहां एमएसपी पर खरीदारी हो सके। इसके लिए 35 हजार और मंडियां बनाने की जरूरत है। फिलहाल देश में 7 हजार मंडियां हैं। फसल की लागत घटाने के लिए सब्सिडी को भी बढ़ाया जाना चाहिए। विजय सरदाना कहते हैं कि फसलों के मामले में भी अमूल मॉडल अपनाना होगा। यानी किसान ही अपनी सहकारी संस्थाएं बनाए और अपने प्रोडक्ट को कन्ज्यूमर तक लेकर जाए। उसे अपनी फसल बेचने के लिए ज्यादा विकल्प मिलेंगे तो जाहिर है मुनाफा बढ़ेगा।
मध्य प्रदेश के पूर्व एग्रीकल्चर डायरेक्टर डॉ. जीएस कौशल कहते हैं कि सरकार प्रोसेस्ड फार्मिंग के लिए किसानों को तैयार करे। यानी वो सिर्फ गेहूं या आंवला नहीं, आटा और मुरब्बा बनाकर भी बेच सके। ग्रामोद्योग और ऑर्गेनिक फार्मिंग की तरफ भी किसानों को रुख करना चाहिए।
नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत का मानना है कि कृषि सेक्टर में क्रांति लाए बगैर भारत 9-10% की विकास दर हासिल नहीं कर सकता है। एग्रीकल्चर में निवेश को बढ़ाने, नई टेक्नोलॉजी को अपनाने और बाजार के मौजूदा सिस्टम में सुधार करने की बेहद जरूरत है।
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