दिल्ली हाईकोर्ट के एक कमेंट को लेकर सोशल मीडिया पर डुगडुगी बज रही है। कोर्ट की टिप्पणी औरतों को लेकर है, तो जाहिर तौर पर मर्दाना आवाजें बैंक बैलेंस जितनी खनक और वजन लिए हैं। दरअसल एक मामले की सुनवाई के दौरान फैसला-पसंद पुरुषों की कोर्ट ने एलान कर दिया कि शादी के वादे पर जिस्मानी रिश्ते बनाना कोई समझदारी नहीं। औरतें अगर ऐसा करती हैं तो वादा टूटने पर वे इसे रेप नहीं कह सकतीं।
कोर्ट की ये बात धड़ल्ले से शेयर हो रही है। 'जागो औरत, जागो' की तर्ज पर हिदायतों का पुलिंदा खुल पड़ा। बहुतेरे कमेंट्स मर्दों को दिलासा दे रहे हैं कि डरो मत, अब रिश्ते से बचाने के लिए तुम्हारे साथ खुद कोर्ट खड़ी है। आखिर कौन मर्द किसी 'जूठी' औरत से शादी करना चाहेगा, भले ही वो उसकी खुद की जूठन हो!
अब एक साल पीछे लौटते हैं। साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई पुरुष किसी औरत से शादी का वादा कर यौन संबंध बनाए और फिर वादा खिलाफी करे तो वो बलात्कारी है। कोर्ट ने ये बात छत्तीसगढ़ के एक डॉक्टर को घेरे में लेते हुए कही, जो इसी वादे पर एक औरत के करीब गया और फिर शादी कहीं और कर ली। जांच में पाया गया कि डॉक्टर का उस औरत से शादी का कोई इरादा ही नहीं था।
सफेद चोगा पहने ये डॉक्टर साहब अकेले नहीं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) का साल 2016 का डेटा बताता है कि उनके पास 10,068 ऐसे मामले आए, जिनमें रेप के पीछे शादी का भरोसा था। साल 2015 में ये संख्या 7,655 रही। मामले देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट्स को बारीकी से जांच करने की हिदायत दी।
कोर्ट के मुताबिक- ये देखना जरूरी है कि क्या मर्द वाकई औरत से शादी करने का 'इरादा' रखता था। या फिर केवल यौन सुख के लिए उससे जुड़ा। गौर करें- इरादा! अगर मर्द अपने इरादे नेक साबित कर सके, तो वो रेप का दोषी नहीं रहेगा। तब ये धोखा प्यार से मन भर जाने की श्रेणी में आएगा और फिलहाल प्यार में ऊब या धोखे के लिए कोर्ट के पास कोई सजा नहीं।
कानूनी दांवपेंच में न उलझें तो भी एक बात यहां बार-बार आती है, औरत इस भरोसे के साथ मर्द से जिस्मानी ताल्लुकात बनाती है कि आगे चलकर वे शादी करेंगे। वहीं मर्दों के लिए शरीर का जुड़ना शादी के लिए खास वजह नहीं। हां, लेकिन बीवी उन्हें कुंआरी ही चाहिए। ऐसी कि जिसे मर्द तो दूर, सूरज की किरणों ने भी न छुआ हो। सारी ही दुनियावी-आसमानी किताबें भी सीख देती हैं कि बीवी अपने खाविंद को जो सबसे प्यारा तोहफा दे सकती है, वो है उसका अनछुआ होना। औरत की यौनिक शुद्धता को उसका अकेला धर्म बताने वाली 'प्योरिटी इंडस्ट्री' खड़ी हो चुकी है, जो जूठी औरतों को दोबारा जोड़ने की मोटी रकम वसूलती है।
लड़कों को पाल-पोसकर बड़ा करते हुए उन्हें भला मर्द बनने की ट्रेनिंग नहीं मिलती, लेकिन लड़कियों के लिए नीति-ज्ञान की ढेर किताबें हैं। सारी किताबों में एक ही बात कि लड़की की नैतिकता, उसके दिल-दिमाग नहीं, बल्कि उसकी छातियों या पैरों के आसपास बसती है।
ये सीख दुनियाभर की लड़कियों के बचपन का हिस्सा है। बीते दिनों सऊदी की अपनी एक दोस्त से बात हो रही थी। बेहद हसीन। गहरे भूरे बाल और भेद देने वाली कत्थई आंखें मानो एक-दूसरे के लिए ही बनी हों। चाहने वालों का हुजूम मुश्किल से ही साथ छोड़ता। उसने अपनी शादी की खबर दी। बधाई देती, उससे पहले ही हिचकियों ने रोक लिया। पता चला कि होने वाला पति उसे वर्जिनिटी को लेकर कुरेदता है।
खूब पढ़ी-लिखी और वजीफा पा चुकी दोस्त को भावी पति पर गुस्सा नहीं, बल्कि खुद को लेकर डर था कि कहीं वो समझ न जाए। फोन रखते-रखते मैंने पूछ ही डाला, क्या तुम लड़के की प्योरिटी को लेकर पक्का हो! वो हंसने लगी, जैसे कोई बचकाना सवाल सुन लिया।
औरतों को बड़ा ही ऐसे किया जाता है कि वे अपने शरीर को लेकर संकोच और शर्मिंदगी से भरी रहें। जहां कपड़ों को तौलिए से छिपाकर सुखाया जाता हो, वहां शादी से पहले यौन संबंध जैसी बात ही कहां आती है। सोच की इस सीली कोठरी में पली लड़कियां घर से बाहर निकलती हैं। पढ़ती हैं। नौकरी करती हैं। लेकिन रुतबेदार काम भी उन्हें बचपन की सीख भुला नहीं पाता। यही कारण है कि वे प्यार या फिर जिस्मानी जरूरत के लिए भी शादी जैसी बड़ी बात का मुंह जोहती हैं। किसी औरत में ये जरूरत समझने के लिए मर्द को माइंड मॉनिटर लगाने की जरूरत नहीं। वो फटाक से शादी की कैंडी थमा देता है।
औरत की सुख में भरी आंखें जब खुलती हैं तो साथी जा चुका होता है, भरोसा छीज चुका होता है। भरोसा और तथाकथित शुद्धता दोनों ही खो चुकी इन औरतों पर समाज टूट पड़ता है। हाल ही में छत्तीसगढ़ महिला आयोग की अध्यक्ष ने ऐसी ही एक बात कह दी। वे कहती हैं कि लड़कियां राजी-खुशी रिश्ता बनाती हैं, लिव-इन में रहती हैं और फिर रिश्ता टूटने पर FIR करने पहुंच जाती हैं। अध्यक्ष के बयान पर राजनेता आपस में गुत्थमगुत्था हैं। इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट की जज प्रतिभा रानी ने भी बयान दिया था कि धोखा खाई औरतें बदला लेने के लिए मर्दों को रेपिस्ट कह देती हैं।
हो सकता है, इक्का-दुक्का औरतें इतने दम-खम वाली हों कि बदले के लिए खुद का रेप विक्टिम कहलाना मंजूर कर सकें। लेकिन बाकी औरतों का क्या? शरीर की शुद्धता को डरी हुई औरतें असल रेप को भी सामने नहीं ला पातीं। वे मान लेती हैं कि रेप ने उन्हें किसी लायक नहीं छोड़ा। मानो औरत का शरीर न हुआ, चिप्स का पैकेट हो गया, जिसे मर्द मालिक आराम से बैठकर चुभलाने वाला था। अब पैकेट से बाहर पड़ी चिप्स को भला कौन पूछे। बस्स। वे ठहर जाती हैं। सारी पढ़ाई, सारे तजुर्बे एक तरफ, औरत की इज्जत एक तरफ।
अब कल्पना करें, ऐसी दुनिया की जहां औरत को जांघों की नैतिकता की बजाए खुद पर भरोसे का पाठ सिखाया जाए। जहां वे अपने शरीर को अपनी जायदाद मान सकें, किसी प्रेमी या पति की नहीं। ऐसी दुनिया में कोई मर्द, किसी औरत का रेप शादी के बहाने तो नहीं ही कर सकेगा। और न ही रेप से औरत की आत्मा तार-तार होगी। बल्कि इस जुर्म को खुली आवाज में वो वैसे ही बता सकेगी, जैसे कोई जमीन पर हकमारी की बात बताता है।
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