एक गली में आठ लाशें, कहीं बच्चे बिलख रहे हैं तो कहीं मां-बाप; परिजन बोले- हमें दो लाख नहीं, परिवार चाहिए https://ift.tt/38cDwWJ

मुरादनगर में भ्रष्टाचार के दानवों के सामने लगता है भगवान भी बेबस हो गए। 'एक मौत उस घर में हुई है, एक उसमें, वहां उस घर में भी दो लोग मरे हैं, हमारी इस गली में ही आठ लोगों की मौत हुई है।' मुरादनगर की डिफेंस कॉलोनी में एक घर के बाहर बैठी ये महिला उंगलियों पर गिनकर श्मशान स्थल पर हुए हादसे में मारे गए लोगों के बारे में बता रही है।

गाजियाबाद प्रशासन ने हादसे में अभी तक 25 लोगों के मारे जाने की पुष्टि की है। बीस से ज्यादा लोग घायल हैं। इस गली में घरों के बाहर लोग खामोश बैठे हैं। कुछ घरों में शव रखे हैं, जबकि कुछ शवों को गाजियाबाद-मेरठ रोड पर रखकर जाम लगा दिया गया है।

67 साल के ओमप्रकाश का शव घर में अकेले रखा गया है। महिलाएं विलाप करते-करते खामोश हो गई हैं। बाहर बैठे लोग ये कहकर दिलासा दे रहे हैं कि ये तो रिटायर हो गए थे, जिम्मेदारियां पूरी कर दी थीं लेकिन उनके परिवारों का क्या जो अकेले कमाने वाले थे? 11 साल की अनुष्का ने हादसे से कुछ देर पहले ही अपने पिता से फोन करके जल्दी घर आने के लिए कहा था। लेकिन अब उनकी लाश घर के बरामदे में रखी हैं।

अनुष्का की आंखें पथरा गई है, वो सामने पैदा हुए हालात को समझ नहीं पा रही है। मां पहले से ही मानसिक रूप से कमजोर हैं जिसकी बीमारी की वजह से दो साल पहले बड़ी बहन ने आत्महत्या कर ली थी। अब मौसी ने उसका हाथ थामा हुआ है। अनुष्का नहीं जानती आगे जिंदगी में क्या होगा। उसके पिता सतीश कुमार राजस्व विभाग में पेशकार थे।

यहां से कुछ ही दूर ओमकार का घर है। 48 साल के ओमकार सब्जी बेचते थे। उनके छोटे भाई अंतिम संस्कार की तैयारियां कर रहे थे। शैया तैयार करते हुए वो कहते हैं, 'मेरे भाई के दो छोटे-छोटे बच्चे हैं, उनका पेट अब कैसे पलेगा?' चार बच्चों के पिता नीरज का घर भी यहीं हैं। उनकी मौत के बाद अब परिजन सवाल करते हैं, 'घर बनाने के लिए लिया गया कर्ज कौन उतारेगा। बच्चों का पेट कौन भरेगा। दो लाख का मुआवजा क्या इस परिवार के लिए काफी होगा?'

पत्रकार मुकेश सोनी अपने घर के बाहर खामोश बैठे हैं। वो अपने 22 वर्षीय बेटे दिग्विजय कि चिता को आग लगाकर आए हैं। उनसे मिलने आए कुछ पत्रकार दिलासा देते हुए व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार की दुहाई दे रहे हैं। बेटे का नाम आते ही मुकेश फफक पड़ते हैं। शब्द उनके गले में फंस जाते हैं। उनकी बेबस आंखें बोलती हैं। मानो कह रही हों, जो पत्रकार जीवन भर भ्रष्टाचार पर लिखता रहा, उसका अपना बेटा ही भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया और वो कुछ नहीं कर पाया।

दिग्विजय की नानी का घर सटा हुआ है। उसे बचपन से नानी ने ही पाला था। अपने घर के सबसे बड़े बच्चे की मौत से नानी बदहवास हैं। वो बार-बार रोते हुए कहती हैं, 'मुझे दो लाख नहीं चाहिए, अपना बच्चा चाहिए। मुझसे तीन लाख ले जाओ, मेरे बेटा ला दो।'

वो श्मशान स्थल यहां से बहुत दूर नहीं है जिसकी हाल में बनी गैलरी पहली बारिश में ही ढह गई। हादसे की खबर पाकर नानी बदहवासी में वहां पहुंची थीं। घायलों और मारे गए लोगों की भीड़ में उन्होंने अपने लाल का खून से लथपथ चेहरा पहचान लिया था।

अब यहां खून से सने जूते चप्पल कंक्रीट के ढेर में पड़े हैं। खून से सनी छतरियां पड़ी हैं। लैंटर में लगे सरिए तुड़-मुड़कर जाल बन गए हैं। मलबा छुओ तो हाथ में रेत आ जाती है। श्मशान में तीन चिताएं जल रही हैं।

दयाराम, जिनकी अंत्येष्टि में आस-पड़ोस के लोग और रिश्तेदार आए थे, उनकी ठंडी हो चुकी चिता से फूल चुने जा रहे थे। उनके अंतिम संस्कार के बाद पंडित ने लोगों से दो मिनट का मौन धारण करने के लिए कहा था। हल्की-हल्की बूंदाबांदी हो रही थी। लोग गैलरी के नीचे खड़े हुए थे कि लैंटर भरभराकर गिर गया।

गौरव पास ही आग से हाथ ताप रहे थे। तेज आवाज सुनकर वो मौके पर पहुंचे थे। वो बताते हैं, 'लोग बल्ली लगाकर घायलों को निकालने लगे लेकिन कोई निकला नहीं। पहले एक ही क्रेन आई थी, दूसरी क्रेन दो घंटे बाद आई थी। यहां एक लड़का पड़ा था, उसकी सांसें चल रहीं थीं, उसे निकालने की बहुत कोशिश की गई लेकिन निकाला नहीं जा सका।'

शिवम भी मौके पर पहुंचे थे। वो कहते हैं, 'यहां एक बुजुर्ग पड़े थे, वहां एक बुजुर्ग मरे पड़े थे। बस तीन चार लोग जिंदा थे। बाकी ने धीरे-धीरे दम तोड़ दिया था। जिसके हाथ में जो आ रहा था उससे लैंटर तोड़ने की कोशिश कर रहा था।'

शाम होते-होते जब मलबा साफ हुआ, कई घरों के चिराग बुझ गए। मारे गए लोगों की हालत ऐसी थी कि देखने वालों के दिल दहल गए। हादसे के बाद मौके पर पहुंची एक महिला कहती हैं, 'किसी के हाथ पैर नहीं थे, किसी का चेहरा आधा था तो किसी का दिल बाहर निकला हुआ था। सरिए लोगों के अंदर घुस गए थे।'


श्मशान का हाल ही में सौंदर्यीकरण हुआ है। जो गैलरी गिरी है पंद्रह दिन पहले ही उसकी शटरिंग खुली थी। अभी अधिकारिक तौर पर उसका उद्घाटन भी नहीं हुआ था। सामने भगवान शिव की सफेद रंग की विशालकाय मूर्ति है जिसकी आंखों के सामने लोगों ने तड़प-तड़प कर दम तोड़ा। मानों भ्रष्टाचार के दानव के सामने वो भी बेबस हो गए हैं।

मोक्ष के द्वार श्मशान में लोग अपना लालच छोड़कर दाखिल होते हैं लेकिन यहां तो लालची लोगों ने मोक्षधाम को ही निगल लिया। यहां एक दीवार पर लिखा है, 'तुम धर्म की दीवार गिराओगे तो भगवान तुम्हारे घर की दीवार गिरा देगा।' लेकिन शायद ये गैलरी गिराने वालों के घरों की दीवारें ना गिरें क्योंकि उन्होंने अपने घर में पक्का सीमेंट लगाया होगा। यहां दीवारों पर जगह-जगह लिखा है- 'सौजन्य से- श्री विकास तेवतिया- अध्यक्ष नगर पालिका परिषद मुरादनगर'



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Eight corpses in a street, somewhere children are dying; Family says- We do not want two lakhs, we need our family


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2XcEjAI
Previous Post Next Post