सार्वजनिक तौर पर वैक्सीन लगवाएं नेता, ताकि लोगों का भ्रम दूर हो सके https://ift.tt/3nnA2oP

अफजल आलम पेशे से पत्रकार हैं और दिल्ली में रहते हैं। अफजल कोरोना वैक्सीन ट्रायल का हिस्सा बने हैं। सात दिन पहले उन्हें पहला टीका लगा है और आने वाली 27 जनवरी को उन्हें दूसरी डोज दी जाएगी। ट्रायल का हिस्सा बनकर अफजल काफी खुश हैं, लेकिन उन्होंने अपने माता-पिता को इसके बारे में नहीं बताया है।

अफजल कहते हैं, ‘मां-पापा को अगर बताता तो वे बहुत परेशान हो जाते। वैक्सीन को लेकर अभी लोगों के मन में कई तरह के सवाल और डर हैं। अच्छे खासे पढ़े-लिखे लोग भी ट्रायल को लेकर आश्वस्त नहीं हैं। फिर मेरे मां-बाप तो गांव में रहते हैं और उन्होंने कोई औपचारिक शिक्षा भी नहीं ली है। ऐसे में उनका डरना तो स्वाभाविक ही है। शहरों के लोग ही अभी इस वैक्सीन को लेकर घबराए हुए हैं।’

लोगों में वैक्सीन को लेकर जो डर हैं, उनके कुछ वाजिब कारण भी हैं। सबसे बड़ा कारण तो यही है कि कई विशेषज्ञ इन वैक्सीन को मिली मंजूरी पर सवाल उठा चुके हैं। इसके अलावा देश में जिन दो वैक्सीनों को मंजूरी मिली है, उसे बनाने वाली कंपनियां खुद एक-दूसरे की वैक्सीन पर सवाल उठा चुकी हैं। ऐसे में आम लोगों के मन में वैक्सीन को लेकर शंकाएं पैदा होना स्वाभाविक ही है।

अफजल आलम दिल्ली में रहते हैं। करीब सात दिन पहले ही उन्हें पहला टीका लगा है और 27 जनवरी को इसकी दूसरी डोज उन्हें दी जाएगी।

हालांकि एक-दूसरे की वैक्सीन पर तीखी टिप्पणी करने के दो दिन बाद ही दोनों कंपनियों (सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक) के मुखियाओं ने साझा बयान जारी कर इस खटास को दूर करने की भी कोशिश की है। लेकिन, इस टीका-टिप्पणी ने उन तमाम लोगों को मजबूती ही दी जो पहले ही वैक्सीन ट्रायल की प्रक्रिया और इसमें हुई जल्दबाजी पर सवाल उठा रहे थे।

स्वाभाविक है कि इन विवादों ने उन लोगों के मन में भी सवाल पैदा किए जो वैक्सीन ट्रायल का हिस्सा बन रहे हैं। अफजल आलम बताते हैं, ‘मेरे मन में भी कई डर और शंकाएं थीं। लेकिन मुझे वैक्सीन बनाने वाली कंपनी से कहीं ज्यादा एम्स और वहां के डॉक्टरों पर भरोसा है। भारत बायोटेक का तो मैंने कभी नाम भी नहीं सुना था। लेकिन, इसलिए आश्वस्त था क्योंकि यह ट्रायल एम्स जैसे संस्थान में हो रहा था। मैं पिछले कई साल से लगातार ब्लड डोनेशन के लिए एम्स जाता हूं इसलिए उस संस्थान को नजदीक से पहचानता हूं। मुझे विश्वास था कि यह संस्थान अगर ट्रायल में शामिल है तो वैक्सीन पर भरोसा किया जा सकता है।'

अफजल के साथ ही उनके भाई हसनैन आलम और उनके दोस्त सूरज कुमार व संतोष त्रिपाठी भी इस ट्रायल में शामिल हुए। वे बताते हैं कि ट्रायल को लेकर जो थोड़ी बहुत शंका थी वह एम्स के डॉक्टरों से मिलने के बाद दूर हो गई। अफजल कहते हैं, ‘मैंने उनसे यह भी पूछा था कि अगर इस वैक्सीन को लगाने के बाद मुझे कुछ हो जाता है तो क्या मेरे परिवार की जिम्मेदारी सरकार लेगी। इस पर मुझे बताया गया कि अगर वैक्सीन लगने के बाद मेरी तबीयत बिगड़ती है तो पूरा इलाज एम्स करेगा और मौत होने जैसी स्थिति में मेरी उम्र और आमदनी के आधार पर घरवालों को मुआवजा भी दिया जाएगा।’

दिल्ली के कस्तूरबा अस्पताल में बुधवार को COVID-19 वैक्सीन के ड्राई रन के दौरान अपनी बारी का इंतजार करते लोग।

अफजल और उनके साथियों को वैक्सीन का पहला डोज लगाए हुए लगभग एक हफ्ता पूरा हो गया है। ये सभी लोग पूरी तरह से स्वस्थ हैं और वैक्सीन का कोई भी साइड-इफेक्ट इनमें से किसी को महसूस नहीं हुआ है। एम्स के डॉक्टर समय-समय फोन करके इनका हाल-चाल भी ले रहे हैं। वैक्सीन को लेकर लगभग ऐसा ही अनुभव निजी चैनल के पत्रकार अमित का भी है। अमित को भारत बायोटेक की कोवैक्सिन की दोनों डोज लग चुकी हैं।

अमित बताते हैं, ‘मैंने जुलाई में ही इस ट्रायल में शामिल होने के लिए आवेदन कर दिया था जब ट्रायल का पहला चरण शुरू हुआ था। लेकिन उस वक्त मुझे एम्स की तरफ से बुलावा नहीं आया। दूसरे चरण के ट्रायल में मुझे बुलाया गया। सारे टेस्ट किए गए, लेकिन वैक्सीन तब भी नहीं लगी। फिर 4 दिसम्बर को तीसरे फेज में मुझे वैक्सीन की पहली डोज लगी और 1 जनवरी के दिन दूसरी। मुझे कोई साइड-इफेक्ट महसूस नहीं हुआ और इस प्रक्रिया का हिस्सा बनकर मैं बहुत खुश हूं।’

हाल ही में सूरज भी ट्रायल में शामिल हुए थे। वे बताते हैं कि ट्रायल को लेकर जो थोड़ी बहुत शंका थी वह एम्स के डॉक्टरों से मिलने के बाद दूर हो गई।

वैक्सीन से जुड़े विवादों के बारे में अमित कहते हैं, ‘मैं जब ट्रायल में शामिल हुआ उस वक्त तक ये विवाद शुरू भी नहीं हुआ था। बाद में जब विवाद के बारे में सुना तब भी मुझे ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। क्योंकि, तब तक दो चरण का ट्रायल पूरा हो चुका था और कहीं से भी ऐसी कोई खबर नहीं आई थी कि वैक्सीन के कोई दुष्परिणाम सामने आ रहे हों। हां, मैंने ये जरूर अनुभव किया लोग ट्रायल में शामिल होने से घबरा रहे हैं। गांव-देहात का छोड़ ही दीजिए दिल्ली के पढ़े-लिखे और बड़े-बड़े संस्थानों में काम करने वाले लोग भी यही सोच रहे हैं कि पहले बाकी लोगों पर वैक्सीन का परीक्षण सफल हो जाए तभी वह इसमें शामिल होंगे।’

अमित ने अपने साथ चार-पांच लोगों को भी ट्रायल में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। अपने अनुभव के आधार पर वे कहते हैं, ‘कोरोना वैक्सीन से जुड़े डर और भ्रांतियां लोगों को आगे आने से रोक रही हैं। इन्हें दूर करना जरूरी है। मुझे लगता है हमारे नेताओं, स्वास्थ्य मंत्री और प्रधानमंत्री को इसके लिए आगे आना चाहिए। जिस तरह से अमरीका में तीन पूर्व राष्ट्रपति मिलकर ये कह रहे हैं कि वे कैमरा पर सबके सामने वैक्सीन लगवाएंगे ताकि लोगों को यकीन हो सके। वैसा ही हमारे यहां के नेताओं को भी करना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी अगर सार्वजनिक रूप से ये वैक्सीन खुद लगवाते हैं तो लोगों का विश्वास बढ़ेगा और इससे जुड़े डर काफी हद तक कम हो सकेंगे।’



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
दिल्ली सहित देशभर में अभी कोविड 19 वैक्सीन का ड्राई रन चल रहा है। ट्रायल के दौरान कई लोगों को वैक्सीन की पहली और दूसरी डोज लग चुकी हैं।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3s3bDII
Previous Post Next Post