बीजेपी पर हावी आलाकमान संस्कृति, दूसरे राज्यों में भी लागू होगा गुजरात मॉडल?


''दाएं, बाएं, मध्य, मध्य के मध्य, गरज यह कि कहीं भी किसी भी रूप में आपको कांग्रेस नजर आएगी. इस देश में जो भी होता है अंततः कांग्रेस होता है. जनता पार्टी भी अंततः कांग्रेस हो जाएगी. जो कुछ होना है उसे आखिर में कांग्रेस होना है. तीस नहीं तीन सौ साल बीत जाएंगे, कांग्रेस इस देश का पीछा नहीं छोड़ने वाली.''

यह पंक्तियां हिन्दी के मशहूर व्यंगकार स्वर्गीय शरद जोशी के व्यंग्य संग्रह ‘जादू की सरकार' के लेख ‘तीस साल का इतिहास' से ली गई हैं. आप सोच रहे होंगे की जब बात गुजरात बीजेपी और वहां की नई बनी सरकार की हो रही है तो मैं प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की बात क्यों कर रहा हूं. शरद जोशी ने यह लेख दशकों पहले लिखा था. चाहे उन्होंने व्यंग्य के तौर पर ही कहा हो लेकिन तब की जनता पार्टी के कांग्रेस बनने की भविष्यवाणी की थी. उनकी यह भविष्यवाणी आज की बीजेपी पर सटीक साबित होती नजर आ रही है.

याद कीजिए ताकतवर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के वो दिन जब उनकी भृकटियां टेढ़ी होने भर से ही रातों-रात मुख्यमंत्री बदल जाया करते थे. कांग्रेस के शक्तिशाली आलाकमान ने क्षेत्रीय क्षत्रपों के पर कतर डाले ताकि भविष्य में कोई गांधी-नेहरु परिवार को चुनौती न दे सके. तब भी और आज भी कांग्रेस में आलाकमान ही मुख्यमंत्री बनाते आए हैं. विधायक केवल उस पर मुहर लगाते हैं. आज भी कांग्रेस का आलाकमान पार्टी के साथ चाहे कितना ही कमजोर क्यों न हो गया हो, लेकिन मुख्यमंत्री और मंत्री बनाने-बिगाड़ने का खेल उसकी हां या ना के बिना नहीं हो सकता.

अब कुछ ऐसा ही भारतीय जनता पार्टी में हो रहा है. अपने पहले पांच साल के कार्यकाल में केवल एक मुख्यमंत्री हटाने वाले नरेंद्र मोदी अपने दूसरे कार्यकाल के केवल डेढ़ साल में पांच मुख्यमंत्री बदल चुके हैं. पीएम मोदी के गृह राज्य गुजरात में तो बीजेपी एक कदम और आगे बढ़ गई. न केवल मुख्यमंत्री बर्खास्त हुआ. बल्कि उसकी पूरी कैबिनेट ही बर्खास्त कर दी गई. जिन चेहरों को सामने रख कर गुजरात में चार साल सरकार चलाई गई, अचानक एक दिन पाया गया कि उनमें से कोई भी ऐसा चेहरा नहीं, जिसके साथ जनता के बीच जाया जा सकता है. इसे बीजेपी का केरल मॉडल इसलिए कहा गया क्योंकि केरल में पिनाराई विजयन ने भी चुनाव में जीतने के बाद ऐसा ही किया. अंतर केवल यह है कि विजयन खुद सीएम रहे और अपने पुराने सारे मंत्रियों को हटा दिया और उन्होंने यह काम चुनाव जीतने के बाद किया, चुनाव के सवा साल पहले नहीं.

बीजेपी में अब उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के अलावा ऐसा कोई मुख्यमंत्री नहीं जो केंद्रीय नेतृत्व के सामने खड़ा हो. हर मुख्यमंत्री के दिल्ली दौरे के समय यह अटकलें शुरू हो जाती हैं कि उसकी कुर्सी जा रही है. बीजेपी का कोई भी मुख्यमंत्री खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा. हालांकि छह महीने पहले योगी की कुर्सी पर खतरा मंडरा रहा था. लेकिन वे न केवल अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे बल्कि पार्टी आलाकमान के कई बार कहने के बावजूद अपने मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं कर रहे. पीएम मोदी के करीबी कहे जाने वाले पूर्व नौकरशाह अरविंद शर्मा के बारे में खूब प्रचारित किया गया कि वे उपमुख्यमंत्री बनेंगे, सरकार के काम पर नजर रखेंगे वगैरह-वगैरह. लेकिन उन्हें पार्टी के दसियों उपाध्यक्षों में से एक उपाध्यक्ष और सैकड़ों एमएलसी में से एक एमएलसी बना कर हाशिए पर डाल दिया गया. कहा गया कि बीजेपी यूपी में सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी लेकिन अब पोस्टरों में केवल मोदी और योगी की ही बात होती है.

हालांकि बीजेपी नेता कहते हैं कि इसे पार्टी का कांग्रेसीकरण कहना ठीक नहीं है. वे कहते हैं कि जहां भी मुख्यमंत्री बदले गए उन्हें आने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर बदला गया. जैसे उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत लोकप्रियता में काफी नीचे चले गए थे. उनकी जगह तीरथ सिंह रावत को बनाना गलती था जिसे पुष्कर सिंह धामी को बना कर सुधारा गया. कर्नाटक में बी एस येदि‍युरप्पा बीजेपी के 75 वर्ष के फार्मूले को दो साल पहले ही पार कर चुके थे. इसलिए वहां नेतृत्व परिवर्तन आवश्यक था. बीजेपी नेताओं का कहना है कि झारखंड में अलोकप्रिय होने के बावजूद मुख्यमंत्री को चुनाव से पहले न हटाना बीजेपी को भारी पड़ा और यह राज्य उसके हाथ से निकल गया. इसीलिए अब पार्टी झारखंड की गलती अन्य राज्यों में दोहराने को तैयार नहीं है.

गुजरात में सवा साल बाद चुनाव है. विजय रूपाणी की पटरी प्रदेश अध्यक्ष सी आर पाटिल से नहीं बैठी जो पीएम मोदी के खास हैं. कोरोना की दूसरी लहर ने गुजरात में भारी तबाही मचाई. लोग ऑक्सीजन, आईसीयू बेड और दवाइयों के लिए तड़पते रहे. ऊपर से महंगाई की मार ने लोगों की कमर तोड़ रखी है. सरकार की नाकामी और कुप्रबंधन ने बीजेपी के खिलाफ नकारात्मक माहौल बना दिया. यह पाटिल के लिए मुश्किल खड़ी करने वाले हालात थे जिन्होंने बीजेपी के लिए सभी 182 विधानसभा सीटें जीतने का असंभव लक्ष्य सामने रखा है. उनकी ओर से यह स्पष्ट कर दिया गया कि अगर बीजेपी को अपने सबसे शक्तिशाली गढ़ गुजरात में वापसी करनी है तो नेतृत्व परिवर्तन और सरकार की छवि सुधारने के अलावा कोई और चारा नहीं है. इसीलिए न केवल मुख्यमंत्री बल्कि उनकी सारी कैबिनेट को ही बर्खास्त कर दिया गया.

लेकिन क्या कांग्रेस और आम आदमी पार्टी इसका फायदा नहीं उठाएंगे? कांग्रेस ने तो बोलना भी शुरू कर दिया है कि मुख्यमंत्री और सभी मंत्रियों को हटा कर बीजेपी ने कोरोना के मोर्चे पर अपनी गलती मान ली है. उधर, आम आदमी पार्टी स्थानीय निकाय के चुनाव में सूरत में अपने प्रभावी प्रदर्शन से उत्साहित है. पूरी तरह से अनुभवहीन मुख्यमंत्री और उनके मंत्री अगले सवा साल में शासन के मोर्चे पर कितना काम कर पाते हैं, यह देखने की बात होगी. भूपेंद्र पटेल सरकार में केवल तीन मंत्री ऐसे हैं जो पहले भी यह जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. बाकी सभी अपेक्षाकृत युवा व अनुभवहीन हैं. जिस तरह से ‘नो रिपीट' फार्मूले पर पुराने मंत्रियों को हटाया गया उसे लेकर गुजरात बीजेपी में असंतोष भी दिखने लगा है. कांग्रेस और आप इस पर करीब से नजर रखे हुए हैं. उन्हें असंतोष की इस चिंगारी के बगावत की आग में बदलने का इंतजार है. कुल मिला कर बीजेपी ने पूरी गुजरात सरकार को बदल कर सरकार विरोधी गुस्से को कम करने की कोशिश की है. लेकिन विपक्ष इसे ही मुद्दा बना कर कह सकता है कि पूरी सरकार को बदलने का मतलब यह भी है कि बीजेपी ने मान लिया कि उसकी सरकार ने चार साल में कोई काम ही नहीं किया. ऐसे में चुनावी वर्ष में यह जोखिम लेना बीजेपी को भारी भी पड़ सकता है.

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