रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों की मार, राशन दुकानों में खाद्य वस्तुओं की खरीद की सीमा तय की जाएगी


Ukraine  Russia War: रूस पर अमेरिका और यूरोपीय देशों के आर्थिक प्रतिबंधों (Economic Sancations) का असर दिखने लगा है. बैंकों में कामकाज प्रभावित होने, एटीएम में लंबी लाइनों के बाद अब दुकानों में खाद्य सामग्रियों की खरीद की सीमा तय कर दी गई है. रूस में रिटेल दुकानों ने आवश्यक खाद्य सामग्री की कालाबाजारी (Black Marketing) की संभावनाओं को रोकने और सभी वस्तुओं की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए फूड पैकेटों का कोटा तय करने का निर्णय़ लिया है. इससे संकेत मिल रहे हैं कि यूक्रेन पर हमले के बाद लगी आर्थिक पाबंदियों की मार देश पर पड़ने लगी है. रूस के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय का कहना है कि पिछले हफ्ते देखा गया कि तमाम आवश्यक खाद्य वस्तुओं (Essential Food Items) को बड़े पैमाने पर खरीद लिया गया, जो कि निजी जरूरतों के हिसाब से काफी ज्यादा था. मंत्रालय ने कहा कि इस कारण उद्योग संगठनों के खुदरा विक्रेताओं ने पेशकश की है कि जरूरी सामान की खरीद का एक कोटा खरीदारों के लिए तय कर दिया जाए.

उद्योग और कृषि मंत्रालय ने भी इस पहल का समर्थन का किया है. इसमें यह भी कहा गया है कि उद्योग संगठन खुद इस नीति का खाका तय कर इसे लागू करेंगे. रूस में आवश्यक खाद्य वस्तुओं के दाम सरकार खुद तय करती है, इसमें ब्रेड, चावल, आटा, अंडा, कुछ मांसाहारी और डेयरी उत्पाद भी इसमें शामिल हैं.रूस पर पश्चिमी देशों ने यूक्रेन पर हमले को लेकर बेहद कड़े वित्तीय प्रतिबंध लगाए हैं. खुद रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने कहा है कि ये प्रतिबंध युद्ध के ऐलान जैसा ही है.

रूस ने 24 फरवरी को यूक्रेन पर तीन और से हमला बोला था, लेकिन वो अभी भी राजधानी कीव और खारकीव जैसे बड़े शहरों पर कब्जा नहीं जमा पाया है. यूक्रेन को जर्मनी, चेक गणराज्य और अमेरिका समेत कई देशों से सैन्य मदद मिली है, जिससे वो रूसी फौजों को कड़ी टक्कर दे पा रहा है.  

आर्थिक प्रतिबंधों से लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को बचाने और गिरती मुद्रा रुबल को मजबूती देने के लिए रूस के केंद्रीय बैंक ने हाल में अप्रत्याशित तौर पर कई बड़े कदम उठाए हैं. इसमें पूंजी निकासी पर नियंत्रण जैसे कठोर उपाय शामिल हैं. रूबल में ऐतिहासिक गिरावट ने 1990 के दशक में रूसी करेंसी को लगे झटके की यादें ताजा कर दी हैं. तब रूबल में ऐतिहासिक गिरावट और भारी महंगाई के कारण लोगों की लाखों की बचत कौड़ियों में बदलते देर नहीं लगी थी.

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