नीतीश के अपने जिले में भी दिख रही एंटी इनकम्बेंसी, गैर कुर्मी और लोजपा वाले बिगाड़ रहे समीकरण https://ift.tt/2J0uCBz

बिहार का नालंदा जिला। बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का घर। राजनीतिक लहजे में कहें तो नीतीश कुमार का चुनावी किला। विपक्षी पार्टियों के मुताबिक, पिछले 15 साल में सबसे ज्यादा विकास इसी जिले में हुआ। बिहार का अकेला ऐसा जिला भी, जहां नीतीश कुमार के स्वजातीय कुर्मियों का दबदबा है।

इसी वजह से नालंदा को बिहार में ‘कुर्मीस्तान’ भी कहा जाता है। यहां विधानसभा की 7 सीटें हैं। फिलहाल 5 सीट पर जदयू का कब्जा है। एक सीट भारतीय जनता पार्टी के पास है और एक राष्ट्रीय जनता दल के पास है। नालंदा की सभी सीटों पर 3 नवंबर को वोट डाले जाएंगे, लेकिन पूरे जिले में राजनीतिक गतिविधियां अभी से तेज हैं।

हर जगह इस बात की चर्चा है कि अबकी नालंदा में क्या होगा? क्या 15 साल बिहार पर शासन करने वाले नीतीश कुमार इस चुनाव में अपना चुनावी किला सुरक्षित रख पाएंगे? क्या उनकी पार्टी नालंदा जिले में अपने पिछले प्रदर्शन को दोहरा पाएगी या इस बार वो पहले से बेहतर करेंगे?

इन सवालों का जवाब जानने से पहले जरूरी है कि इस बार हुई राजनीतिक मोर्चे बंदी को जान लें। समझ लें कि पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2015 के चुनाव में जो साथ लड़े थे, वो अबकी कहां हैं और किससे लड़ रहे हैं।

नालंदा की 7 सीटों में से 5 पर जदयू का कब्जा है। एक सीट भाजपा के पास है और एक राजद के पास।

बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में नीतीश कुमार की जदयू और भाजपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। नीतीश कुमार महागठबंधन का हिस्सा थे। नीतीश लालू की राजद और कांग्रेस के साथ चुनाव में उतरे थे। उधर, एनडीए में भाजपा के साथ लोकजन शक्ति पार्टी (लोजपा) थी। अब एनडीए में भारतीय जनता पार्टी, जेडीयू और लोजपा के साथ जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा भी है।

इस विधानसभा चुनाव में जदयू ने जिले के 7 विधानसभा सीट में से 6 पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं। एक सीट पर भाजपा चुनाव लड़ रही है। महागठबंधन की तरफ से 4 सीटों पर राजद चुनाव लड़ रही है। 3 सीट पर कांग्रेस मैदान में हैं।

अब लौटते हैं उन सवालों पर, जिनका जिक्र शुरू में ही हुआ है। पटना से नालंदा की तरफ चलने पर सबसे पहले हिलसा विधानसभा पड़ता है। विनोद रविदास हिलसा बाजार के खाखी चौक पर ठेला लगा कर कपड़े बेचते हैं। वो राजनीतिक दाव-पेंच तो नहीं जानते, लेकिन इस बात को लेकर साफ हैं कि अबकी बदलाव होना चाहिए।

कहते हैं, “गरीबों के लिए कुछ नहीं हुआ। सड़क, बिजली से पेट नहीं भरता। राशन-ताशन बंद हो रहा है। काम-धंधा है नहीं। पानी, बिजली भी गरीब के टोले में सबसे आखिर में आता है। नीतीश कुमार नालंदा के हैं, लेकिन इस बार तो हम उनको वोट नहीं देंगे।"

विनोद बिहार के उन लाखों वोटर्स का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो बिना कैमरे पर आए, बिना शोर मचाए अपनी बात कहते हैं। हजार कारणों की वजह से वो आज भी अपने ‘मन की बात’ खुलकर नहीं कह पाते।

नालंदा में कुशवाहा और अति पिछड़े समुदाय की बड़ी आबादी है।

इस चौक पर करीब आधा घंटा बिताने के बाद साफ-साफ अंदाजा हो जाता है कि अबकी राज्य के मुखिया को उनके घर में ही बड़ी चुनौती मिलने वाली है। प्रोफेसर अवधेश कुमार, इस्लामपुर विधानसभा के वोटर हैं और इनसे हमारी मुलाकात हिलसा कोर्ट में होती है। बकौल अवधेश कुमार इस बार के चुनाव में जदयू को नालंदा से बड़ा झटका लगने वाला है।

इनके मुताबिक पार्टी जीती हुई 5 सीटों में से 3 गंवाने जा रही है। अपने इस आकलन की वजह बताते हुए वो कहते हैं, “देखिए। नीतीश कुमार के शासन में नालंदा जिले का विकास नहीं हुआ है। केवल एक जाति विशेष का विकास हुआ है। उनकी जाति के लोगों को नौकरियां मिली हैं। इस वजह से नालंदा की बाकी जातियों के मतदाताओं में गुस्सा है। वो गुस्सा इस बार आपको वोटिंग में दिखेगा।”

2019 में हुए लोकसभा चुनाव के वक्त तक नालंदा जिले में कुर्मी मतदाताओं की संख्या चार लाख 12 हजार थी। यादवों का वोट करीब तीन लाख, जबकि मुसलमान वोटरों की संख्या एक लाख 60 हजार के करीब थी। जिले में कुशवाहा और अति पिछड़े समुदाय की बड़ी आबादी है।

इलाके के जानकार बताते हैं कि इस चुनाव में नीतीश की लहर नहीं है, वोटिंग तो कास्ट लाइन पर ही होगा। इस सब के बाद नीतीश सरकार को लेकर गैर कुर्मी मतदाताओं में गुस्सा है और इसका असर चुनाव नतीजों पर निश्चित पड़ेगा।

नालंदा जिले में कुर्मी मतदाताओं की संख्या चार लाख 12 हजार, यादवों का वोट तीन लाख। मुसलमान वोटरों की संख्या एक लाख 60 हजार के करीब है।

कल्याण बीघा नीतीश कुमार का पैतृक गांव है, जो हरनौत विधानसभा में आता है। इस बार नीतीश कुमार को अपने गांव के लिए वरदान मानने वाले लोग भी डरे हुए हैं। नाम ना बताने की शर्त पर कल्याण बीघा के एक ग्रामीण कहते हैं, “खूब असर पड़ेगा। देखिएगा ना। अबकी साहेब के खिलाफ मोर्चेबाजी है। उनकर नेतवा सब उनको लेकर डूबेगा। ऊ सब सही रिपोर्ट नहीं दे रहा है। ई बार नालंदा भी गड़बड़ा जाएगा।”

राज्य की बाकी विधानसभा सीटों की तरह ही नालंदा के हर विधानसभा सीट का समीकरण भी अलग है। मौजूद विधायक से नाराजगी। जातीय समीकरण और लोजपा उम्मीदवारों द्वारा काटे जाने वाले वोट की वजह से भी हर सीट पर जदयू के लिए मुश्किलें बढ़ रही हैं। इस बार नालंदा में नीतीश कुमार वो चेहरा नहीं हैं, जो अपने दम पर चुनाव जितवा सकें। एक बात जो नीतीश के पक्ष में जा रही है, वो है लालू-राबड़ी का शासन काल।

बिहारशरीफ विधानसभा सीट में एक कुशवाहा बहुल गांव है। नाम है, सोहढ़ी। इस गांव का पूरे देश में ऑर्गेनिक खेती को लेकर नाम है। गांव के सामुदायिक भवन पर कुछ लोग बैठे हैं। जब हम उसने चुनाव का जिक्र करते हैं तो ताश खेल रहे एक बुजुर्ग कहते हैं, “ऐसा तो जीतेगा नतिशे। लालू-राबड़ी के पक्ष में वही बोल रहा है जो खाओ-पकाओ। बाजार में कोरोना के बाद खाना खिला रहे हैं। इसीलिए कह रहे हैं।”



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
नालंदा सीएम नीतीश कुमार का गृह जिला है। यहां उनका हमेशा से दबदबा रहा है।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/35Bj13J
Previous Post Next Post