तर्क है कि किसान कम पढ़े-लिखे होते हैं, तो उन्हें कानूनों की समझ नहीं, जानिए इस बिल पर क्या कहते हैं, पंजाब-हरियाणा के ‘पढ़े-लिखे किसान

 

पंजाब और हरियाणा में किसानों के प्रदर्शन लगातार जारी हैं। सरकार की तरफ से यह आरोप लगाया जा रहा है कि आंदोलन कर रहे किसानों को विपक्षी दलों द्वारा बहकाया गया है और नए कानूनों को लेकर उनके मन में झूठे डर बैठा दिए गए हैं। कई लोगों का यह भी तर्क है कि चूंकि अधिकतर किसान अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे हैं लिहाजा उन्हें कानूनों की समझ ही नहीं है। ऐसे आरोपों के जवाब में पंजाब और हरियाणा के ‘पढ़े-लिखे किसान’ इस मामले पर क्या राय रखते हैं, यह जानने कि लिए हमने कुछ ऐसे किसानों से बात की जिन्होंने बड़ी-बड़ी डिग्रियां हासिल की है।

‘कॉंट्रैक्ट फार्मिंग किसानों के हित में नहीं’

नए कानूनों में कॉंट्रैक्ट फार्मिंग को सबसे विवादास्पद मानते हुए प्रदीप कहते हैं, ‘किसानों का विरोध प्रदर्शन बिलकुल जायज़ है। निजी कंपनियां सिर्फ़ और सिर्फ़ अपना मुनाफ़ा देखती हैं। उन्हें किसानों की भलाई से कोई लेना-देना नहीं है। यह ये क़ानून पूरी किसानी को ही धीरे-धीरे निजी हाथों में सौंपने जा रहे हैं।’

प्रदीप अपना अनुभाव साझा करते हुए कहते हैं, ‘कॉंट्रैक्ट फार्मिंग के नुकसान मैं ख़ुद झेल चुका हूँ। तीन साल पहले मैंने राशि सीडज नाम की एक कंपनी के लिए बीज तैयार करने का कॉंट्रैक्ट लिया था। पहले साल इसमें फ़ायदा भी हुआ। मुझे लगभग प्रति एकड़ चार हजार रुपए की बचत हुई। ये देखकर मैंने अगले साल 22 एकड़ में बीज उपजाए। लेकिन उस साल प्रति एकड़ मुनाफ़ा चार हजार से घटकर ढाई हजार तक आ गया।

इसके बाद भी मुझे लगा कि अगर मैं और ज़्यादा जमीन पर बीज उपजाऊ तो दो-ढाई हजार प्रति एकड़ के हिसाब भी अच्छी बचत हो सकती है। तो इस साल मैंने कुल 54 एकड़ ज़मीन पर बीज उपजाए। लेकिन जब हम बीज लेकर कंपनी के पास पहुंचे तो कहा गया कि आधे बीज अच्छी क्वालिटी के नहीं हैं। कंपनी ने वो वापस कर दिए।’

प्रदीप कहते हैं, ‘अब कॉंट्रैक्ट के हिसाब से मैं कोर्ट जा सकता हूँ लेकिन मैं अपनी बाकी खेती देखूं या कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटता रहूँ। कोर्ट की स्थिति हम सबने देखी है कि वहां फैसला होने में कितना समय लगता है। जब मुझ जैसा पढ़ा-लिखा आदमी भी कोर्ट जाने से बच रहा है तो वो किसान जो पढ़ा-लिखा भी नहीं है वो कैसे कंपनियों से निपटेगा।

पढ़े-लिखे लोग भी कॉंट्रैक्ट पर साइन करने से पहले ध्यान नहीं देते हैं। एक मोबाइल ऐप्लिकेशन ही जब हम लोग डाउनलोड करते हैं तो क्या टर्म्ज एंड कंडिशन पढ़ते हैं? हम सब बिना पढ़े ही ‘एग्री’ करके आगे बढ़ जाते हैं। ऐसा ही कोई बीमा लेते हुए भी करते हैं और बैंक के तमाम अन्य कामों में भी। तो एक आम किसान कैसे कॉंट्रैक्ट की बारीकियों को समझेगा। वो मजबूरन साइन करेगा और बड़ी कंपनियों के रहमों-करम पर काम करने को मजबूर होगा।

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