यहां रहने वाले हर मर्द दलाल और औरत को देह बेचने वाली समझती जाती है, कभी राजा-महराजा अपनी औलादों को यहां तहजीब सिखाने भेजते थे

 


शाम के पांच-साढ़े पांच बज रहे हैं। सड़क के दोनों तरफ छोटे-छोटे मकान बने हैं। कुछ मकानों के बाहर बोर्ड लगा है और उस पर लिखा है, ‘फैमली डेरा है। बिना परमिशन अंदर आना मना है।’ वहीं कुछ घरों के बाहर टंगे बोर्ड पर लिखा है, ‘सपना कुमारी और माही कुमारी, नर्तकी एवं गायिका। प्रदर्शन रात्रि 9 बजे तक।’ सड़क उखड़ी हुई है। शायद इसी बारिश में उखड़ गई है। इस उखड़ी हुई सड़क से आने-जाने वाले लोग सामने देखने की जगह दाएं-बाएं देखते हुए आगे बढ़ रहे हैं।

इनकी नजरें घरों की खिड़की, छतों और गेट के बाहर बैठी लड़कियों और महिलाओं को देखने की जुगत कर रही हैं। लड़कियों ने अपने चेहरे पर डार्क मेकअप लगाया हुआ है। होठों पर गहरे लाल रंग की लिपस्टिक, आंखों में गहरा काजल और चेहरे पर फाउंडेशन लगाए हुए महिलाएं लगभग हर एक घर के बाहर बैठी हैं।

बिहार के सबसे बड़े और सबसे पुराने रेड लाइट एरिया चतुर्भुज स्थान की हर शाम ऐसी ही होती है। शायद यही वजह है कि फुल मेकअप में बैठी महिलाओं को इन घूरती आंखों से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। वो या तो आपस में बतिया रही हैं या अपने-अपने स्मार्ट फोन पर कुछ देख रही हैं।

जिस सड़क पर ये दृश्य है, उसे शुक्ला रोड कहते हैं। इसके पश्चिमी छोर पर चार भुजाओं वाले भगवान का मंदिर है, जिसकी वजह से इस जगह को चतुर्भुज स्थान कहते हैं। सड़क के पूर्वी छोर पर पर गरीब स्थान मंदिर है। ये भगवान शिव का मंदिर है और सावन में यहां बहुत बड़ा मेला लगता है। इन दो मंदिरों के बीच आबाद हैं वो ढाई हजार परिवार, जिनके पुरखे कभी कला के उपासक माने जाते थे, जो कभी बड़े-बड़े दरबारों में अपना हुनर दिखाते थे और जहां बड़े से बड़े राजा-महाराज अपने बच्चों को तहजीब सिखाने के लिए भेजा करते थे।

वक्त बदला, पीढ़ियां बदलीं और इस इलाके की पहचान भी बदल गई। बड़े-बड़े कोठों की दीवारें दरकने लगीं। नाच-गाना बंद होता चला गया और देह व्यापार ने अपना अड्डा जमा लिया और चतुर्भुज स्थान को ‘रेड लाइट’ एरिया कहा जाने लगा। सड़क के पूर्वी छोर की पान की दुकान पर मिले 30 साल के रफीक कहते हैं, ‘इस समाज को मुख्य धारा में जोड़ने का कभी प्रयास ही नहीं हुआ। सबने बस लूटा-खसोटा। हमारा भी ताल्लुक इसी गली से है। मैट्रिक के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी, क्योंकि क्लास में सबको मालूम चल गया था कि हम शुक्ला रोड में रहते हैं। कभी आते होंगे यहां राजा, महाराजा और होता होगा नृत्य-संगीत। हमने जब से होश संभाला है, तब से तो यहां केवल अत्याचार ही देखा है। इस गली में रहने वाले हर मर्द को दलाल और हर औरत को देह बेचने वाली समझा जाता है।”

रफीक जब ये बातें कह रहे हैं तो उनके चेहरे पर उभरे गुस्से और उनकी बातों से झलक रहे निराशा के भाव को साफ-साफ महसूस किया जा सकता है। वैसे तो देश से रजवाड़ों, बड़े घरानों और जमींदारों के खत्म होने के साथ ही चतुर्भुज स्थान की पहचान भी बदलने लगी लेकिन असल मार तब पड़ी जब टीवी, फिल्म और इंटरनेट आया। लेकिन कोरोना की वजह से लगे तीन महीने लंबे लॉकडाउन ने तो इन्हें पूरी तरह से तबाह कर दिया। अपने घर के बाहर मोबाइल पर गाना सुन रही शबनम लाख मिन्नतों के बाद बात करने के लिए तैयार होती हैं। वो कहती हैं, “तबाही तो अभी भी जारी है। हमें कार्यक्रम करने की इजाजत नहीं मिली है। घर में नाच-गाना कर सकती हैं, बस। आप लोगों के गए होंगे केवल तीन महीने। हमारा तो पूरा साल ही चला गया।” इतना कहकर शबनम अपने घर के अंदर चली जाती हैं और पर्दा खिंच लेती हैं। ये इस बात का संकेत है कि हमारे वहां होने से उन्हें दिक्कत हो रही है।

यहां से निकलते-निकलते रफीक कहते हैं, “जिन तीन महीनों की आप बात कर रहे हैं वो तो इनके लिए कयामत के दिन थे। अगर जिला प्रशासन ने राशन का इंतजाम नहीं किया होता तो भूख से मर जाते ये परिवार।”

इन दो-ढाई हजार परिवारों को शासन-प्रशासन शहर में अपराध की मुख्य वजह मानता रहा है। खुद को संभ्रांत मानने वाले परिवार इधर से गुजरना भी ठीक नहीं समझते। इनकी नजर में ये ऐसी मछलियां हैं, जिनसे पूरा तालाब गंदा हो रहा है। शायद यही वजह है कि मुगलों के वक्त से आबाद इस बस्ती में पहली बार 1994 में सुधार का काम शुरू होता है। शुरुआत एड्स जागरूकता अभियान के तहत कंडोम बांटने से हुई थी।

साल 1997 तक यहां दस आंगनबाड़ी केंद्र खुल गए। महिलाओं और बच्चियों को अनौपचारिक शिक्षा देने के लिए दस सेंटर भी खुल गए। किशोरी चेतना केंद्र का गठन हुआ और इसके तहत इलाके की सौ लड़कियों को पढ़ाया-लिखाया जाने लगा, लेकिन साल 2000 आते-आते ये सारे काम बंद भी हो गए। जयप्रकाश नारायण के सिपाही और सर्वोदयी नेता परमहंस प्रसाद सिंह इन सारे प्रयासों को जमीन पर उतारने में लगे थे। इनके मुताबिक मजबूत इच्छा शक्ति ना होने की वजह से और तत्कालीन जिलाधिकारी के बदल जाने की वजह से सब बंद हो गया।

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