जम्मू कश्मीर में पहली बार डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल (DDC) के लिए चुनाव होने जा रहे हैं। यह चुनाव अपने आप में खास है क्योंकि, स्पेशल स्टेटस स्टेट से यूटी बनने के बाद पहली बार यहां वोटिंग हो रही है। जम्मू-कश्मीर के लोगों और नेताओं के लिए यह इम्तिहान भी है। यहां लंबे समय से पंचायती राज को लागू करने की मांग थी।
वहीं अब सरकार का दावा है कि पंचायत, BDC और उसके बाद अब DDC चुनाव होने से थ्री टियर सिस्टम पूरी तरह लागू हो गया है। जम्मू कश्मीर में कुल 20 जिले हैं और हर जिले में डीडीसी के लिए 14 क्षेत्र बनाए गए हैं। यूटी में कुल 280 सीटों के लिए चुनाव होगा। जिसके लिए राज्य में खासा उत्साह भी देखा जा रहा है। वहीं सरकार और चुनाव आयोग के लिए कोरोना के बीच आतंकवाद और सर्दी बड़ी चुनौतियां हैं।
मौजूदा जमीनी स्थिति क्या है
जब DDC चुनाव की घोषणा हुई थी, तब साफ नहीं था कि नेशनल कॉन्फ्रेंस और PDP चुनाव में उतरेंगी या नहीं। दोनों साथ-साथ उतरेंगी, इसकी तो किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। लेकिन, कश्मीर की मुख्य राजनीतिक पार्टियों का पीपल्ज एलायंस गुपकार डिक्लेरेशन (PAGD) के बैनर तले एक साथ चुनाव लड़ने से यूटी में मुकाबला कांटे का हो गया है।
हालांकि जम्मू में कई सीटों पर दबदबा पिछली सरकार में भागीदार रही भाजपा का है। लेकिन कांग्रेस, नेशनल पैंथर्स पार्टी और निर्दलीय बहुत सीटों पर बीजेपी का गणित बिगाड़ते नजर आ रहे हैं।
वहीं कश्मीर में भी कई सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी मजबूत स्थिति में हैं। इसके अलावा कई सीटों पर कश्मीर में NC और PDP आमने-सामने हैं। हालांकि कांग्रेस का पलड़ा कहीं भी ज्यादा मजबूत नजर नहीं आ रहा है। कांग्रेस कश्मीर में वोट काटने का काम कर सकती है तो जम्मू में कई सीटों पर BJP को टक्कर दे रही है। इसके साथ ही जम्मू में BJP के कुछ नेताओं से जनता की नाराजगी पार्टी को नुकसान पहुंचा सकती है।
लोगों की जरूरत से जुड़े बुनियादी मुद्दे क्या हैं
जम्मू और कश्मीर में हर जिले के बुनियादी मुद्दे भले अलग हों, लेकिन भ्रष्टाचार और बेरोजगारी मुख्य मुद्दा रहेगा। DDC का चुनाव ऐसे तो छोटा चुनाव माना जाता है। इसलिए गावों की सड़कें, पंचायत घर, स्कूल, अस्पताल बिजली, पानी और उसके बाद एग्रीकल्चर में सरकारी स्कीमों का लाभ चुनावी मुद्दा रहेगा।
भाजपा इस चुनाव में भी प्रत्याशी से ज्यादा पीएम मोदी के नाम पर वोट मांग रही है। साथ ही हाल ही में सुर्खियों में आए रोशनी लैंड स्कैम को भी मुद्दा बना रही है। वहीं PAGD पूरी तरह आर्टिकल 370 का हटना, कश्मीर से स्पेशल स्टेटस का जाना, राज्य का यूटी बनना जैसे मुद्दों के साथ मैदान में उतर रही हैं। जबकि कांग्रेस कोरोनाकाल में जनता के नुकसान और राज्य में विकास न होने पर केंद्र और भाजपा के खिलाफ मुद्दा बना रही है।
यह चुनाव विधानसभा चुनाव की तैयारी साबित हो सकता है
डीडीसी के इन चुनावों को भाजपा के लिए जम्मू कश्मीर में लिटमस टेस्ट के रूप में देखा जा रहा है। इसके बाद विधानसभा क्षेत्रों का डी लिमिटेशन होना है और फिर विधानसभा चुनाव। मगर यह चुनाव पूरी तरह से भाजपा हो या कांग्रेस, NC हो या PDP उनके लिए एक टेस्ट है कि आखिर उनकी सियासी जमीन कहां और कितनी है। वहीं अब लगभग सिमट चुकी पार्टियां पैंथर्स पार्टी हो या पीपल्ज कांफ्रेंस या फिर नई अपनी पार्टी, इन सबका भी इम्तिहान हैं यह चुनाव। यही कारण है कि कई दिग्गज इस चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
कई पूर्व मंत्री और विधायक लड़ रहे चुनाव
कई पूर्व मंत्रियों और विधायकों ने चुनाव में उतरकर मुकाबला और ज्यादा दिलचस्प बना दिया है। इसके साथ ही कई पूर्व अधिकारी, अधिकारियों की पत्नियां, उनके रिश्तेदार और कई परिवार एक-दूसरे के सामने मैदान में हैं। कई जगह तो पब्लिक प्लेटफार्म पर सियासी दुश्मनों को इन चुनावों ने दोस्त बना दिया है और मामा-भांजे को दुश्मन।
भाजपा से पूर्व मंत्री शाम चौधरी सीमावर्ती सुचेतगढ़ से मैदान में हैं तो शक्ति परिहार पहाड़ी क्षेत्र डोडा से दो सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। पूर्व विधायक प्रो गारू राम आरएस पूरा तो भारत भूषण भलवाल से मैदान में हैं। वहीं BJP के दो पूर्व विधायक पार्टी छोड़ भाजपा प्रत्याशियों के खिलाफ प्रचार कर रहे हैं। हीरानगर से दुर्गा दास तो चेनानी से दीनानाथ भगत ने पार्टी छोड़ निर्दलीय प्रत्याशियों को समर्थन दिया है।
राजौरी में एक जगह युवा सरपंच जावेद चौधरी मैदान में हैं तो उनके मामा और पूर्व पीडीपी मंत्री चौधरी जुल्फिकार दूसरे प्रत्याशी को समर्थन दे रहे हैं। लोकतंत्र के लिए अच्छी बात यह है कि ज्यादातर युवा निर्दलीय मैदान में हैं। उधमपुर से नरेश माथुर जो प्रोफेसर हैं तो सुरिंदर सिंह गिल्ली युवा राजपूत सभा के अध्यक्ष। बनी से कांग्रेस प्रत्याशी काजल पत्रकारिता में रह चुकी हैं तो दूरदराज लाटी से काजल ठुकान पढ़ी- लिखी प्रत्याशी हैं और एक अधिकारी की पत्नी भी।
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