कहानी- श्रीरामचरित मानस में हनुमानजी माता सीता का पता लगाने के लिए लंका पहुंचे। वहां विभीषण को श्रीराम के पक्ष में किया, सीता को श्रीराम का संदेश दिया, लंका दहन किया, रावण को अपना पराक्रम दिखाया। इतने बड़े काम करने के बाद हनुमानजी सकुशल श्रीराम के पास लौट आए।
इतनी बड़ी सफलता के बाद भी वे श्रीराम के सामने मौन खड़े थे। वे जानते थे कि अपनी तारीफ खुद नहीं करनी चाहिए। उस समय जामवंत और सुग्रीव ने उनकी तारीफ की और श्रीराम को वह सब बताया, जो हनुमानजी ने लंका में किया था।
पूरी बात सुनने के बाद श्रीराम ने भी हनुमानजी की प्रशंसा की, तो उन्होंने भगवान के चरण पकड़ लिए कहा, 'प्रभु ऐसा न करें, आप तो मेरी रक्षा करें।' हनुमानजी ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि प्रशंसा सुनने पर कहीं अहंकार न आ जाए।
उस समय किसी ने हनुमानजी से पूछा, 'जब श्रीराम प्रशंसा कर रहे थे, तो आपने उनके पैर क्यों पकड़ लिए थे?'
तब हनुमानजी ने समझाया, 'जब भी कोई आपकी तारीफ करे, आपकी लोकप्रियता बढ़े तो भगवान, माता-पिता, गुरू, राष्ट्र के साथ ही जिन्होंने हमारी मदद की है, उनके चरणों में हमारी सफलता को अर्पित करना चाहिए।'
सीख- हमें जब भी कोई बड़ी सफलता मिले और लोग हमारी प्रशंसा करते हैं, तो हमें विनम्रता से उसे स्वीकार करना चाहिए। जिन लोगों ने हमारी मदद की है, उनका आभार जरूर मानें। अपनी तारीफ खुद करने से बचें, वरना हमारे स्वभाव में अहंकार बढ़ने लगेगा। ये काम दूसरों को करने देना चाहिए।
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