विदेश में कमाने वाले भारतीय अब पैसा नहीं भेज पा रहे, कई महीनों तक स्थिति सुधरने के आसार नहीं https://ift.tt/2XlOG5q

भारत वह देश है, जहां विदेशों से लोग सबसे ज्यादा पैसा भेजते हैं, लेकिन इस साल कोरोना के चलते इसमें भारी गिरावट आई है। अप्रैल-जून 2020 की तिमाही में पिछले साल के मुकाबले 16.2 हजार करोड़ रुपए कम भेजे गए। वहीं, जुलाई-सितंबर की तिमाही में यह कमी 17.7 हजार करोड़ रुपए की रही।

वर्ल्ड बैंक का अनुमान है कि 2020-21 में विदेशों से भारत भेजे जाने वाली रकम में 9% की गिरावट आएगी, जबकि कई सालों से विदेशों से भारत आने वाला पैसा लगातार बढ़ रहा था। 2019 में भी इसमें 5.5% की बढ़ोतरी हुई थी। कोरोना की वजह से विदेशों में लोगों की नौकरियां चली गईं और ऐसे कई लोग देश लौट आए। इस वजह से इस साल विदेशों से आने वाले पैसे में कमी आई।

वंदे भारत के तहत 38 लाख लोगों को विदेशों से वापस लाई सरकार
कोरोना से पहले तक 1.36 करोड़ NRI देश से बाहर थे। मई की शुरुआत से अब तक 38.4 लाख लोगों को वंदे भारत मिशन के तहत सरकार देश वापस ला चुकी है। इस दौरान कुल 6500 फ्लाइट्स चलाई गईं। वंदे भारत मिशन के तहत सिर्फ UAE से 4,57,596 लोगों को भारत वापस लाया गया, जो वहां की कुल आबादी का 5% है।

नागरिक उड्डयन मंत्री के मुताबिक, वापस आए यात्रियों में वे भी शामिल हैं, जो दो देशों के बीच हुए एयर बबल समझौते के तहत लौटे हैं। इस समझौते के तहत दो देश आपस में कुछ प्रतिबंधों और नियमों को मानते हुए आवाजाही शुरू कर देते हैं। भारत ने 23 देशों के साथ एयर बबल समझौता किया है।

वापस आने वाले ज्यादातर मजदूर बिहार के
दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर NRI की मदद के लिए तैनात एक अधिकारी बताते हैं, ‘वंदे भारत मिशन के तहत लौटे ज्यादातर मजदूर बिहार से थे, जो खाड़ी देशों में काम कर रहे थे। नौकरी छूटने की वजह से पहले ही उनके पास पैसे नहीं थे। फिर ज्यादातर को 72 घंटे के अंदर कराई गई कोरोना जांच की जानकारी नहीं थी। ऐसे में लौटने पर उन्हें एयरपोर्ट पर कोरोना जांच के लिए 5000 रुपए खर्च करने होते थे। यह उनके लिए बड़ी मुसीबत थी। इस प्रक्रिया में देरी से उनकी अपने शहरों की फ्लाइट भी छूटीं और उन्हें दोहरा आर्थिक नुकसान हुआ।’

लोग पैसा उधार लेकर वापस आए
तिरुअनंतपुरम के सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज में पढ़ाने वाले प्रवासी मामलों के जानकार डॉ. हीरालाल बताते हैं, 'केंद्र सरकार ने विदेशों से लौटने वालों की मदद नहीं की। उनसे वापस आने के पैसे भी वसूले। लॉकडाउन के चलते जिन मजदूरों की नौकरी पहले ही छूट चुकी थी, उन्होंने मोटी रकम उधार लेकर विदेशों से वापस आने के टिकट और जांच वगैरह का खर्च उठाया। अब वे अगर कमाने भी लगे तो यह कर्ज चुकाने में ही उनकी कई महीने की आमदनी खप जाएगी। ऐसे में विदेशों से आने वाले धन में आई गिरावट फिलहाल जल्दी सामान्य नहीं होगी।'

केरल और पंजाब की अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर
विदेशों से भेजा गया धन अर्थव्यवस्था के लिए बहुत जरूरी होता है। NRI विदेशों से जो पैसा भारत भेजते हैं, वह बड़ी मात्रा में देश के घाटे यानी करंट डेफिसिट की भरपाई करता है। 2019 में विदेशों से आया धन कुल GDP का 3% था।

2020 में इसमें आई कमी का सबसे ज्यादा असर केरल पर पड़ने की गुंजाइश है, जिसके करीब 25 लाख प्रवासी खाड़ी देशों में रहते हैं। मनी कंट्रोल के मुताबिक, केरल में आने वाले विदेशी धन में 15% की गिरावट आने का अनुमान है। केरल और पंजाब में बड़ी संख्या में ऐसे परिवार हैं, जो अपने खर्च के लिए पूरी तरह से विदेशों से भेजे गए पैसों पर निर्भर रहते हैं।

डॉ. हीरालाल कहते हैं, ‘भले ही केरल, पंजाब और कुछ अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों को विदेशों से भेजे वाले धन के मामले में भारी गिरावट का सामना करना पड़ेगा, लेकिन खाड़ी में मजदूरी करने वाले उत्तर भारतीयों के लिए यह बड़ी त्रासदी होगी, क्योंकि इनके पास पहले से की गई बचत नहीं है।’

अन्य देशों की आर्थिक मंदी भी असर डालेगी
दुनिया की कई बड़ी अर्थव्यवस्थाएं मंदी की चपेट में आई हैं। इससे वहां रहने वाले भारतीयों के पैसा भारत भेजने में कमी आना तय है। जो यहां से लौटे हैं, उन्हें फिर नौकरी मिलना भी मुश्किल होगा।

डॉ. हीरालाल के मुताबिक, कोरोना का असर 2021 में भी दिखता रहेगा। वे कहते हैं, 'स्थिति सामान्य होने पर केरल जैसे राज्यों के स्किल्ड वर्कर अपना काम पाने में सफल रहेंगे, लेकिन राजस्थान, बिहार और यूपी के नॉन-स्किल्ड वर्कर्स को परेशानियां उठानी पड़ेंगी।'

खाड़ी देशों में काम करने वालों पर सबसे ज्यादा असर
राज्यसभा में दिए गए सरकार के जवाब के मुताबिक, भारत में विदेशों से आने वाले कुल धन का 82% यूएई, अमेरिका, सऊदी अरब, कतर, कुवैत, ओमान, ब्रिटेन और मलेशिया से आता है। विदेशों से आने वाले कुल धन में 50% से ज्यादा हिस्सा खाड़ी देशों का होता है।

हालांकि, इस साल तेल के दामों में आई गिरावट और इम्पोर्ट के कम होने से भारत के करंट डेफिसिट पर बोझ कम हुआ है, लेकिन बुरा पक्ष यह है कि खाड़ी देशों की इकोनॉमी पर भी असर पड़ा है। इससे भारत के लोगों के लिए वहां रोजगार का संकट पैदा हो गया है। ऐसे भारतीयों के वहां से लौटने की संख्या भी बढ़ी है।

NRI दो वजहों से पैसे भेजते हैं-
1. परिवार की जरूरतों के लिए
2. बचत/निवेश के लिए

सरकार ने राज्यसभा में दिए एक जवाब में बताया था कि भारतीयों ने विदेशों से जो धन भेजा, उसमें से करीब 60% का इस्तेमाल परिवार की जरूरतों, 20% का उपयोग बैंक डिपॉजिट और 8.3% का इस्तेमाल जमीन, संपत्ति और शेयर आदि में निवेश के लिए किया गया था।

फिर भी भारत नंबर 1 बना रहेगा
इस सबके बावजूद भारत विदेशों से भेजे जाने वाले पैसों के मामले में नंबर 1 बना रहेगा। फिलहाल भारत के बाद चीन, मैक्सिको, फिलीपींस और मिस्र में सबसे ज्यादा पैसा विदेशों से भेजा जाता है। 2019 में 25,43,577 भारतीय रोजगार के लिए विदेश गए थे, लेकिन यात्राओं पर रोक से इसमें साल 2020 और 2021 में बहुत कमी आएगी।



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