बचपन में पिता का एक्सीडेंट हो गया, घर चलाने के लिए अखबार बांटा; आज पांच दुकानों के मालिक

 आज हम आपको अजमेर के भरत ताराचंदानी की कहानी बताने जा रहे हैं। भरत जब छठवीं क्लास में थे, तब उनके पिता का एक्सीडेंट हो गया था और वो बेड रेस्ट पर चले गए थे। तभी से भरत और उनके परिवार का संघर्ष शुरू हो गया था। आज वो पुष्कर में पांच दुकानों के मालिक हैं और टर्नओवर करोड़ों में है। ये सब वो कैसे कर पाए, उन्हीं से जानिए।

भरत कहते हैं, 'पिता अकेले कमाने वाले थे और अचानक उनका एक्सीडेंट हो जाने से कमाई बंद हो गई। हम सब भाई-बहन छोटे थे। मां समझ नहीं पा रही थीं कि अब परिवार का भरण-पोषण आखिर होगा कैसे? दिनोंदिन हालात बिगड़ते ही गए। मां ने सिलाई-बुनाई का काम शुरू किया। बड़े भाई ने मेडिकल स्टोर पर जाना शुरू कर दिया। मैं किराने की दुकान पर जाने लगा। सुबह अखबार भी बांटता था। एसटीडी पीसीओ पर काम किया। हम लोग हर छोटा-बड़ा वो काम कर रहे थे, जिससे घर में चार पैसे आ सकें। कुछ सालों तक जिंदगी की गाड़ी ऐसे ही चलती रही।'

उन्होंने बताया कि हम सिंधी कम्युनिटी से आते हैं। हमारी कम्युनिटी के लोग या तो बिजनेस करते हैं या पैसा कमाने विदेश जाते हैं। पहले तो ऐसा ही होता था। मेरे बड़े भाई को किसी लिंक के जरिए पश्चिम अफ्रीका जाने का मौका मिला। वो वहां नौकरी करने लगे। वो जो पैसे भेजते थे, उससे हम उधारी चुका रहे थे। चार साल बाद वो वापस आ गए और पुष्कर में नौकरी करने लगे।

भरत बताते हैं, 'मैं 12वीं कर चुका था। अपने मामा के एक कॉन्टैक्ट से मैं दुबई चला गया और वहां टेक्सटाइल कंपनी में नौकरी करने लगा। मुझे लगता था कि दुबई जाते ही सब ठीक हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वहां मैंने बहुत स्ट्रगल किया। सामान की डिलिवरी, बुकिंग से लेकर कार्टन उठाने तक का काम करता था। पांच साल तक वहां नौकरी करता रहा।'

भरत कहते हैं कि ये बहुत पहले तय कर लिया था कि मुझे इतना कमाना है कि मेरे घरवालों को कभी पीछे मुड़कर न देखना पड़े।

इंसेंटिव की स्कीम काम कर गई

वो कहते हैं, 'जब लौटकर अजमेर आया तो बड़े भाई ने कहा कि अब हमें अपना कुछ करना चाहिए। आखिर कब तक किसी दूसरे के लिए काम करते रहेंगे। गल्फ कंट्री में रहने वाले अपने एक दोस्त से मैंने तीन लाख रुपए उधार लिए। कुछ पैसे बड़े भाई ने यहां-वहां से लिए और हमने पुष्कर में 6 लाख रुपए में लीज पर एक दुकान ले ली। जहां दुकान ली, वहां उस समय कोई डेवलपमेंट नहीं था। आसपास के दुकानदार बोल रहे थे कि यहां शाम को परिंदे भी नहीं दिखते, ग्राहक क्या आएंगे। लेकिन मैंने देखा कि वहां आसपास होटल और धर्मशालाएं बहुत हैं। मुझे उम्मीद थी कि कपड़े की दुकान खुलेगी तो ग्राहक आना शुरू हो जाएंगे। मैंने हिम्मत करके वहीं दुकान खोली।'

भरत ने बताया, 'गाइड और ड्राइवर्स को पांच परसेंट इंसेंटिव देना शुरू किया। शर्त यही थी कि जितने ग्राहक तुम दुकान पर लाओगे, उतना इंसेंटिव तुम्हें भी मिलेगा और दस से पंद्रह परसेंट डिस्काउंट ग्राहकों को भी दूंगा। मेरी ये स्कीम काम कर गई और दुकान पर ग्राहकों की भीड़ लगना शुरू हो गई। मेरी दुकान पर बसों में टूरिस्ट आने लगे। रात में दो-दो बजे तक ग्राहकी होनी लगी।'

तीन दुकानों को मिलाकर बनाया शोरूम

वो कहते हैं कि ये सब देखकर आसपास के कई व्यापारियों ने मेरी दुकान के आसपास दुकानें खोलना शुरू कर दीं। धीरे-धीरे मार्केट डेवलप हो गया। सब जगह एक जैसा माल मिलने लगा। फिर मुझे लगा कि अब कुछ बड़ा नहीं किया तो फिर बिजनेस में आगे नहीं बढ़ पाएंगे। इसलिए जो भी पैसा कमाया था, वो सब लगाकर दो दुकानें और खरीदीं। तीनों दुकानों को मिलाकर शोरूम में तब्दील कर दिया। तब से आज तक मुझे और मेरे परिवार को पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा। अब हमारे पास पुष्कर में पांच दुकानें हैं। जिस दुकान पर मैं बैठता हूं, उसका ही टर्नओवर एक करोड़ से ऊपर है। दस से पंद्रह लोगों को हम रोजगार दे रहे हैं। मैंने ये अनुभव किया है कि भले ही जो किस्मत में तो वो आपको न मिले, लेकिन जो आपकी मेहनत का है, वो आपसे कोई नहीं छीन सकता।

भरत ने कहा, 'मुझे लिखने-पढ़ने का शौक बचपन से ही रहा है। पहले मजबूरी के चलते ये काम नहीं कर पाया था। अब बिजनेस के साथ ये भी कर रहा हूं। कई स्क्रिप्ट्स पर काम कर रहा हूं। हां और सुबह उठने का जो नियम पांच साल पहले था, वो आज भी है। आज भी सुबह साढ़े सात-आठ बजे दुकान खोल देता हूं। चाहे कुछ भी हो।'



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